April 24, 2025

धर्मप्रेम बन्धुओं, माता बहनो, जिस परिसर में, जिस वातावरण में, जिस माहोल में आकार परमात्मा के वचनों का साक्षात मूर्त रूप हमारे समक्ष दृष्टिगोचर होता है। परमात्मा के वे या बच्चणम् तित्थयार्णम् गौमम धनये् सेवा करने से तित्थगर्णाम् गौत्र को उपार्जित करता है। इस संदेश का स्मरण होता है। ऐसी यह दिव्य सारी आसपास की अनुभूतियाँ कराने वाला माहोल और इस माहौल को जिनके वचन, जिनके सिद्धांत, जिनके सूत्र हमें भी अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करते हैं ऐसे परमात्मा तिर्थनकर प्रभू की वाणी के प्रति आप सभी के प्रति मेरी आस्था, मेरा अभिनंदन। प्रवचन के लिये स्थानक उपयुक्त है, स्कूल उपयुक्त है क्योंकि स्थानक में जो भी हमारे श्रावक-श्राविकाएँ उपस्थित होते हैं वे संत सत्यजी के माध्यम से जिन वाणी को समझते हैं सुनते हैं। उसे कुछ अपने जीवन में धारण करने का प्रयास करते हैं।

स्कूल में प्रवचन ठीक है क्योंकि वहाँ पर बच्चे आने वाले समय में जो हमारा भविष्य बनने वाले हैं उनके साथ में कुछ संवाद हो सकता है लेकिन यह परिसर तो निःशब्द बना देता है, यहाँ तो हमारे प्रवचन मुख हो जाते हैं। कार्य भी अपने आप में बोलता है। जो कार्य यहाँ चल रहा है सेवाधाम आश्रम में हम लोग थोडा मुश्किल से पहुँचे, मुश्किल से इस अर्थों में कि उज्जैन वासियों का प्रेम हमे निकलनें में थोडा सा रुकावट बन रहा था, बडा प्यार, बडा आत्मीय भाव उनका था और यह थोडा सा हमारे लीक से हटकर था, रूट से हटकर था। हम लोग रूट से हटकर जब भी किसी प्रसिद्ध तीर्थ में भी नहीं जाते हैं तो यहाँ आने का कोई प्रश्न ही नहीं था लेकिन जिस तरीके से सुधीर जी गोयल ने इन्दौर में यहाँ की आश्रम की गतिविधियों के विषय में चर्चा की थी। उन्होंने उसका हमारे सामने एल्बम के माध्यम एक चित्रण रखा था।  दिल में कभी न कभी भावना थी कि हम जायें ऐसे कार्य में अपनी उपस्थिति भी क्यों न हो दर्ज कर दें। हम और क्या कर सकते हैं। एक हमारे पास अपने गुरू के द्वारा, अपने महापुरूषों के द्वारा दिया गया जो भी साधना का सत्व है उस सत्व के द्वारा अपनी उपस्थिति देकर उनके लिये मंगल कामना कर सकते हैं। हमारे पास इसके अलावा क्या है। आपके पास बहुत कुछ है। अभी जब हम लोग आ रहे थे सुधीर भाई ने बताया कि म.सा. यहाँ पर हमारे इस परिसर में बच्चों को पढ़ाने के लिये, उनको थोडा सा आगे बढ़ाने के लिये टीचर्स की जरूरत है। कितने लोग हैं हमारे जो ऐसा समय दे सकते है जो ऐसी भी सेवा दे सकते हैं। आपके पास सब कुछ है हम चाहें तो भी हमारी कुछ मजबूरियाँ होती हैं, हम लोग नहीं समय दे पाते लेकिन आप दे सकते हैं जो भी मन में धारे। अरे हम देखें आज यह सेवा हमारे जीवन में रही हुई कई प्रकार की गीतरणे जो एक जमा पापों की सारी गठरी है उसको खत्म करने वाला, उससे रहित बनाने वाला। 

मैं सोचता हूँ कि हमें अपने जीवन में एक तरह से आनंदित करने वाला, हमें अपने जीवन में एक तरह से हल्का-फुल्का बनाने वाला सेवा से बढ़कर दूसरा कोई माध्यम नहीं हैं। जो सेवा होती है वह सेवा हमें अपने जीवन में एक तरह से रिफ्रेशिंग करने वाली सबसे बडी दवा है। वह सेवा भी कितने सुन्दर ढ़ंग से और कितने व्यवस्थित ढ़ंग से हो रही है जब प्रत्यक्ष देखा तो पता चला। एक-एक विभाग में गए, हर विभाग में एक ऐसा स्थान, हर विभाग की अपनी विशेषताएँ हैं और प्रत्येक विभाग को उस तरह से संभाला गया है डिजाईन किया गया है। प्रत्येक विभाग को संभालने वाली जो टीम है वह वास्तव में बहुत धन्यवाद की पात्र है।

यहाँ तो थेंक्स और धन्यवाद के अलावा हालांकि यह शब्द भी बहुत औपचारिक है लेकिन उनके अलावा इनके प्रति एक कृतज्ञता के अलावा कोई शब्द नही है कि जिस प्रकार की सेवा इनकी गाड़ी जो गोयलजी को लेकर आई थी तिवारीजी भी बराबर पहुंचे। मैं बताता हूँ आपको इनका काम करने का तरीका कितना व्यवस्थित है। गोयल जी जब आये हमारे पास में आये तो मैंनें कहा कि हम लोग कैसे आ सकते हैं हमको सस्ते की जानकारी चाहिये। दूसरे दिन गूगल मेप से पूरा प्रिन्टआउट निकलकर हमारे पास व्यक्ति के हाथ से भिजवा दिया जिस पर यह शब्द लिखकर दिये कि हमारे पाँच सौ लोग आपका इंतजार कर रहे हैं, सबके मन में आशा बनी है कि आप आयेंगे ही। इतना भावनात्मक वाक्य का उन्होंने उपयोग किया कि जिसको हम कहीं भी किसी भी रूप से निग्लेट नहीं सकते थे।

लेकिन काम करने का तरीका कितना अच्छा है फिर खुद आए हमने कहा भई उसमें तो कुछ समझ नहीं पड रहा है। वह आपने दिया बराबर है कि चैतीस किलोमीटर सीधा उज्जैन से उन्हेल होगा और यदि हम सेवाधाम होकर जायें तो चूवालीस किलोमीटर होगा लेकिन कैसे? क्या है किलोमीटर कुछ समझ नहीं पड रहा है तो दूसरे दिन ही हमारे हाथ में किलोमीटर सहित गाँव के नाम वगेराह लिखकर हमारे पास भिजवा दिये कि महाराज जी इस तरह से। यानि मेरे कहने का मतलब इस तरह से एक काम करने का तरीका एक छोटी सी बात से समझ में आ जाता है कि काम करने का तरीका टोटल पॉइंट-टू पॉइंट यानि बिल्कुल एक्युरेसी। यह ट्रांस्प्रेसी-एक्युरेसी सेवाकार्य में जहाँ होती है वह सेवा कार्य निश्चित रूप से जो मैने कहा था इनकी गाडी पर लिखा था मनव सेवा माधव सेवा कितनी बडी बात है।

आज हम बाहरी कई चीजों में अपने आपको संतुष्ट कर लेते है लेकिन यह बहुत रूट वाली चीजे हैं, बहुत बेसिक वाली चीजे हैं। जिस तरीके से जिन लोगों की सेवा हो रही है वह वास्तव में हम लोग उसको किसी तरह से शब्दों में वर्णित नहीं कर सकते। एक किस्सा बताया हमको कल नमक मण्डी से आते समय एक बुजुर्ग की इनको रात के अंधेरे में पेड हिलने पर हलचल दिखाई दी। जाकर देखा तो एक भाई वहाँ थे। उनको जब गाडी में लाये तो तो वह गाडी में निरंतर बोल रहे थे मुझे मारो मत, मुझे मारो मत। किसी ने उनको घर पर या वह जहाँ भी थे बहुत ज्यादा उनको प्रताड़ित किया था जिसके शरीर पर पूरे निशान थे। उनका नियम है कि जिसको भी यहाँ लायेंगे सबसे पहले उसको नहलायेंगे। यह देखो बहुत बडी बात है। जाने वाले को नहलाने वाले बहुत हैं लेकिन आने वाले को नहलाना यह वास्तव में परमात्मा की सेवा है। उनका मानना ही यही है कि किस रूप में भगवान आयेंगे मुझे नहीं पता। मैं अभिषेक तो करता नहीं पर इसी को अभिषेक मानता हूँ। हमने एक-एक शख्सियतों को यहाँ देखा है उनमें चंेजेज आ गया। मुझे बडी प्रसन्नता है कि ऐसे इस महान कार्य को हमारे परमात्मा प्रभु महावीर के पूर्ण सभी ऐसे भक्तों का, अनुयायियों का पूरा-पूरा सहयोग मिला है। याने जब मैं ऐसा देखता हूं तो मुझे बड़ी खूशी होती है कि नही नही यह सब तो पैसा कमाते है और रखते है, अरे कितना काम हुआ है और इसमें जहां-जहां संभव हुआ है सहयोग किया हुआ है और उन परिवारों को धन्य है और उन व्यक्तियों को धन्य है जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति को इस सेवाधाम के लिये अर्पित कर दिया जो यहां पर अवेदना केन्द्र बना है उस भाई ने अपने खुद की मालकियत का जो बंगला था उसे बेचकर के जितनी राशि आई उसे सेवाधाम के लिए अर्पित कर दिया। कितना दिया इससे महत्वपूर्ण सर्वस्व दिया यह महत्वपूर्ण है। सबसे बड़ी बात है। राशि एक दूसरी बात है वो भी मकान अंतिम है लेकिन काम के प्रति इस सेवा के प्रति समर्पण की बात है और यह सारी सेवाएँ कहीं न कहीँ निश्चित मानकर चलिये कि हम सभी के लिए आशीर्वाद बनती हैं।

अभी हम घूम रहे थे बच्चों के चेहरों पर, बुजुर्गों के चेहरों पर जो मुस्कुराहट देख रहे थे, उनके मन की प्रसन्नता को देख रहे थे वास्तव में वह अनमोल है उसको कोई भी खरीद नहीं सकता और ऐसी सेवा। जब हम सूरत में थे तो एक जगह प्रवचन करके लौट रहे थे। वास्तुलगजरिया में गए थे वहाँ पर आचार्य श्री जी का प्रवचन था हम चार संत साथ में वहाँ से लौट रहे थे। हमारे आचार्य श्री जी और दो संतो के उपवास थे। वहाँ के एक समाजसेवी कनुभाई टेलर जो एक अच्छी संस्था चलाते हैं वह आचार्य श्री के परिचित थे इसलिये उनकी संस्था में जाना था पर समय हो गया था मुझे छोटे संतों ने कहा कि अपन सीधे चलते है क्योंकि वह चार किलोमीटर का चक्कर है। मैंनें आचार्य श्री से जाकर निवेदन किया  भगवन हम लोग एकासन वाले इधर से निकल जाते हैं, आप वहाँ से होकर आओ। 

आचार्य श्री जी ने जो शब्द कहे थे वह गोयल जी की विनति के समय मुझे ध्यान में आये। उन्होनें कहा युवाचार्यजी (पोछी) वह चीज तो बाद में भी हो जायेगी लेकिन उन बच्चों की जो सेवा हो रही है, उन बच्चों के चेहरे पर जो मुस्कुराहट है वह देखना सबसे महत्वपूर्ण है और वास्तव में जब हम वहाँ गए, हमने उस प्रकल्प को देखा तो मन गदगद हो गया। वहाँ आचार्य श्री जी के मात्र उपस्थित होने से आप विश्वास नहीं करेंगे उस संस्था के लिये चालीस लाख का डोनेशन आधे घंटे में एकत्रित हो गया। आचार्य श्री जी ने जो सूरत के महासंग के कार्यकर्ता चल रहे थे उनसे मात्र इतना कहा कि तुम्हें इस संस्था के लिये जो भी उचित लगे कार्य करना है। कनुभाई ने कहा कि मोदी जी का कार्यक्रम हमने कराया उस समय भी हमको इतना डोनेशन नहीं आया जितना आचार्य जी के इस कार्यक्रम मे संस्था को सहयोग मिला। हम लोगों को विहार तो वैसे भी करना है आप लोगों के लिये तो हमलोग चलते हैं। आप लोगों के लिये तो हमलोग चलते हैं। ऐसे कार्यों के लिये जिसमें परमात्मा के सिद्धांतों की, परमात्मा की आज्ञा के पालन की, परमात्मा के प्रति रही हुई आस्था की झलक मिलती है इसलिये यह कार्य वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है।

हमारे बुजुर्गों ने कहा है सेवाधर्म परम् धर्मयो, सेवाधर्म बहुत गंभीर है इसे योगी भी नहीं कर सकते। ध्यान करने के लिये बैठ जाना, या साधना के लिये बैठ जाना, तपस्या कर लेना यह आसान है लेकिन सेवा करना बहुत मुश्किल है, बहुत कठिन है। इसीलिये जो सेवा कर रहे हैं उनको साधुवाद है। यहाँ सिर्फ सेवा ही नहीं हो रही है अभी हमने यहाँ बच्चों के केन्द्र में देखा सभी बच्चे नमोकार मंत्र बोलते हैं। एक बच्चा जो आठ साल से बिस्तर पर है वह नमोकार मंत्र बोलता है इसलिये संस्कार भी हो रहे हैं, एक अच्छे वातावरण में पल रहे हैं।

उनको नारकीय यात्नाओं से निकालकर मानवीय जीवन जीने का यहाँ पर एक सुंदर अवसर दिया जा रहा है। नाम भी वास्तव में बहुत सुंदर है सुधीर। सुधीर का अर्थ जो बहुत धैर्यशाली होता है और वही धैर्यशाली व्यक्ति इस प्रकार के कार्य को इतना सुंदर रूप दे सकता है। जो है वह दस प्रतिशत भी नहीं है क्योंकि यहाँ आवश्यकता बहुत है, जरूरत बहुत है। एक तरफ हम देख रहे हैं सेवा का प्रकल्प चल रहा है और एक तरफ हम देखें तो संवेदना-शून्य जीवन मानव निरक्त जीता जा रहा है। अपने सगे माँ-बाप की सेवा करना भी उसके लिये कई बार भारी पड जाता है और ऐसी स्थितियाँ देखने को मिलती हैं जिन्हें परिवार वालों ने स्वीकार करने से इंकार कर दिया, एक प्रकार से उनकी सेवा से इंकार कर दिया। पहले दिन से आज तक कभी भी सुधीर भाई ने यह नहीं कहा कि यहाँ उनकी सेवा हो रही है। उन्होंने कहा यहाँ पाँच सौ आदमी का परिवार है इस परिवार को आशीर्वाद देने उपस्थित होना है यह बहुत बडी बात है। उन्होंने यह नहीं कहा मैं इनकी सेवा करता हूँ, उन्होंने यह कहा यह हमारा परिवार है। और परिवार की तरह ही यहाँ सब होता है जहाँ उनका खाना बनता है वहीं इनका खाना बनता है। जो उनके लिये सुविधा है वही इनके लिये भी सुविधा है। यह बहुत बडी बात है कि आज गोयल जी का परिवार, उनकी धर्मपत्नी, उनकी बेटियाँ उनके कार्य में सौ प्रतिशत साथ दे रही हैं ऐसा बहुत मुश्किल होता है। यह सेवा जो है एक प्रकार से साधना का आनंद देने वाली है। हम जिस समय आचार्य श्री जी के सानिध्य मे ध्यान शिविर जाते हैं वहाँ पर एक बात कही जाती है कि ध्यान क्या है, आत्म-ध्यान का अर्थ क्या है? आँखें बंद करो तो भेद-ज्ञान और आँखें खोलो तो अभेद-ज्ञान यानि जब आँखें बंद करे तो मेरा शरीर और मेरी आत्मा भिन्न है इसका एहसास मुझे हो और जब आँखें खोलूँ तो सब मेरे जैसे और सब मेरे जैसे। तेरा-मेरा, मेरा-तेरा यह सारा भेद मिट जाए वह ध्यान की स्थिति होती है वह हमारे लिये अभ्यास का विषय है। लेकिन यहाँ पर प्रत्यक्ष रूप से देखते है कि अपने समान सबको मानकर के यहाँ जो सेवा हो रही है उसके लिये इस प्रकल्प से जुडे हुए प्रत्येक व्यक्ति की खूब-खूब हमारी ओर से अनुमोदना कि आपका यह कार्य जो मानवता के लिये एक दीप-स्तंभ की तरह है। इस कार्य में आप सदैव यशस्वी बनें, आपका यह सेवा कार्य यहाँ पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाये, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रकार का एक ऐसा उत्साह लाये, उसके जीवन में नई उमंगे भर दे और आप सभी इस कार्य में जुडकर के अपने जीवन को धन्य बनाने का प्रयास करें। हम यहाँ पर उपस्थित हुए हैं, हम सभी संतों की ओर से इस सम्पूर्ण कार्य के लिये खूब-खूब मंगलकामना। जैसा मैंनें शुरू में कहा कि हम तो क्या कर सकते हैं। हमारी ओर से मंगलकामना जो सदभावनाएँ हैं वह संप्रेषित करेंगे। लेकिन आप भी सिर्फ मंगलकामना और संवेदना देकर मत निकल जाना। आप कहेंगे म.सा ने सदभावना दी इसलिये अपन भी सदभावना देख चलें जायें। अगर कहीं भी किसी भी रूप में आपके द्वारा इस प्रकल्प में सहयोग की संभावना हो तो उस संभावना को आप मूर्त रूप देने का जरूर प्रयास करना क्योंकि आपकी एक छोटा सा भी प्रयास बहुत बडा संबल बनेगा जिसको हम रामायण की भाषा में कहते हैं गिलहरी का हिस्सा। गिलहरी ने  थोडी-थोडी सी मिट्टी लाकर के सेतु में डाली। सेतु तो सारा वानर सेना ने बनाया, हनुमान ने अपने साथीयों के साथ बनाया लेकिन गिलहरी ने भी अपना हिस्सा रखा। एक तो सहयोग यह हो गया दूसरा आज आप संकल्प करके जाये कि यहाँ के प्रत्येक कार्य को देखकर के जावे और कभी भी आपको इस कार्य में सहयोग करने वाला व्यक्ति नजर आये तब आप अवश्य इस कार्य के बारे में सिफारिश करोगे उसको सूचित करोगे। यदि आपसे इस कार्य के बारे में कोई पूछेगा तब आप इसके बारे में पॉजिटीव बात करेंगे। यह दो चीजें भी करते जाओ तो बहुत बडा सहयोग होगा। हम यहाँ दो संकल्प करके जायें कि जो कार्य चल रहा है, उस कार्य के संदर्भ में हमको कोई व्यक्ति मिलता है जो सहयोग कर सकता है तो उसे प्रेरणा दें कि यह कार्य बहुत अच्छा है और यदि कोई हमसे पूछे तो हम उसको कहें की यह कार्य करने जैसा है क्योंकि यहाँ सुधीर भाई जैसा व्यक्ति है जो सुबह प्रति दिन नौ बजे तक मौन करता है, जिसने एक संकल्प लेकर बारह वर्ष तक अन्न दिया, वह एक संकल्प का फल लेकर के चलता है जिसको किसी प्रकार की लगजरी चीजें नहीं चाहिये। ऐसे व्यक्ति के द्वार यह सेवा का प्रकल्प, यह इतना बडा कार्य सबको साथ में लेकर के हो रहा है। हम सभी उसमें मिलकर के इस कार्य को एक सुंदर रूप दें।

भाईजी आते है बच्चे दोड़कर आते है गले लगाते है वह अपने आप को बहुत आश्वस्त महसूस करते है जो आज मुझे बहुत खुशी हुई कि जब उन्होंने कहा कि यहां जो लोग ठीक हो जाते है वह अन्य लोगों को संभालते है याने एक दूसरो को प्यार बांटते है, यहां पर कुछ ऐसे लोग है जो घरवाले बुलाए तो भी नही जाना।

हमने एक बहन देखी तीसरी मंजिल पर रहती है वो माजी को घर वाले बुला रहे है आज आ जावो पर नही उन्होंने कहा कि मैं वहां जाती हूं तो दुखी होती है मुझे तो यही रहना है मुझे यहां अच्छा लगता है यानि ये जो प्यार और आत्मीयता दी जा रही है आप इसमें अपना सहयोग कर सकते हो। आप अपने पास जो क्या है आप अपने पास एक तरह से जो अंतर में किसी के प्रति आत्मीय भाव है इन लोगो के साथ बांटो इनकी चेहरे पर खुशी देखकर के आप अपनी सारी पीड़ा भूल जावोगे। आप अपने मन की सारी जितनी भी कलुशिकता है उसको दूर दोगे तो आप अपना प्यार बांटने आओ सिर्फ पैसा देने के लिए नही आना है जिनको भी संभव है आप आकर के उनको वात्सल्य से हाथ घुमा दो तो वह कितने खुश हो जाते है।