
श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी महाराज साहेब की पवित्र वाणी से सेवाधाम के बारे में व्यक्त किए गए विचार –
सेवाधाम प्रेम, क्षमा और अभयदान का जीवन्त उदाहरण है,
परिवार के बच्चों को माह में एक बार सेवाधाम जरूर लाएं !
– पद्म भूषण सरवस्वतीलब्ध, आचार्य श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी म.सा.
2005 में यहां आया था, 13 साल के बाद फिर यहां आना हुआ। आशीर्वाद तो वो टाइम भी दिया था आज भी देता हूं। वो टाइम जो आशीर्वाद कोट किया था वो ही कोट आज कर रहा हूं। सुधीर भाई की और हर दाता की हर कार्यकर्ताओं की जो यहां मेहनत कर रहे है उनके फलस्वरूप यह आश्रम जल्दी से जल्दी बन्द हो जाए ऐसा मैं आशीर्वाद देता हूं।
सुधीर भाई – धन्यवाद (हर्ष-हर्ष)
बन्द हो जाए मतलब कि पूरे हिन्दुस्तान में एक भी आदमी ऐसा ना हो जिनकी यह रिक्वायरमेंट बनी रहे। बन्द हो जाए इनका अर्थ यह नही कि रास्ते पर चलते फिरे सभी का स्वास्थ्य ऐसा पवित्र हो जाए, यहां आने की किसी को भी जरूरत ही ना पड़े। मगर जब तक यह है यह देखने के बाद तीन चीज मन में आई-
एक मुझे और आपको डाउन टू अर्थ रहना चाहिए। जमीन पर ही रहना चाहिए। चाहे सम्पत्ति कितनी हो चाहे, बुद्धि कितनी हो चाहे, सफलता कितनी हो कोई अहम् पुश्ट करने जैसा नही है। छोटे से बच्चे को लेकर के वृद्धों को देखा, डबल ग्रेजुएट वाले को देखा, अमीरों को देखा सब देखने के बाद यह लगता है भगवान यथाकथ कभी भी तीन चीजों का नशा दूसरे को नेग्लेक्ट करने की बुद्धि का शिकार कभी ना बनावे।
कच्छ के भूकम्प में देखा है। 26 जनवरी का भूकम्प, 26 जनवरी को हम शंखेश्वर थे जो पीड़ा देखी एक लड़का मुझे मिलने के लिए आया था, ‘‘भागवान पाश्र्वनाथ शंखेश्वर दादा के पास जाकर के प्रार्थना करके आया हूं। एक भूकम्प का झटका और दे दो’’। मैं बोला दोस्त तू क्या बोलता है। ये तबाही तूने देखी नही भूकम्प की ? ‘‘महाराजसाहब! आप आपकी जगह पर बराबर होंगे मैं मेरी जगह पर बराबर हूं। मेने यह प्रार्थना इसलिए कि- महाराजसाब! मेरी बहन की शादी थी। 26 जनवरी को पुरा परिवार शादी के माहौल में मस्त था, एक-एक घर में 13 लोग हम रहते थे महाराजसाहब! आपको मालुम होगा 2000 में भुकंप आया था जब का समय था आठ और साडे आठ के बीच में सब्जी लेने के लिए घर से बहार निकला और यहां भूकम्प आया। पिताजी-मांॅ जिनकी शादी थी वो बहन, 13 लोग एक झटके से भुकम्प में खत्म हो गए मैं अकेला बचा। बस भगवान से एक प्रार्थना करू एक झटका आए और मैं भी चला जाऊ।’’
हमने वो दुःख देखा नही सूना होगा शायद यहाँ देखने का मौका मिलता है। एक सुनना अलग बात होती है और देखना बिलकुल अलग बात होती है। खूद के दोश को देखकर दुःखी ना हो माफ, मगर दुसरे के दुःख को भी देखकर यदि कोई दुःखी नही होता है तो वह आप्त पुरूश नही है। सब कुछ खतम हो गया उनके पास।
धन्यवाद सभी को देना का मन होता है जिस ढंग से सबको मैं आपको गेरंटी के साथ कहूंगा- दो चीज 1 आसक्ति और 2 अहिंकार!
कच्छ के भूकम्प के बाद पाकिस्तान कि बार्डर तक हम विहार करते हुए गए और भूकम्प में जो भी डिस्टब ऐरिया थे उनको मैंने देखा। एक-एक करोड़ रूपये का जिन लोगों ने डोनेशन दिया था वह हजार-हजार रूपये के लिए तरस रहे थे। अपने बंगले को देखकर के जिनको लगता था पूरे बनारसकाठा में मैरे जैसा कोई बंगला नही होगा, उनको तहस-नहस होते हुवे मैंने देखा। आसक्ति व अहंकार ये दोनों को चेलेन्ज करने वाली ये प्रकृति की दिक्कत।
मैं आपसे यही पूछना चाहता हूॅ सच बोलू तो व्ही आर डाउन टू अर्थ। आज आपके पास क्या है कभी भी कुछ भी हो सकता है। ये सेवाधाम इनको देखने के बाद पहले नम्बर की अनुभूति यह हो कि डाउन टू अर्थ। दूसरे नम्बर की अनुभुति वो स्प्रेड द लव। आपके प्रेम को सीमित मत बनाओ शायद हमारा प्रेम बहुत संर्किण दायरे में है। आप जिसको प्रेम दो वह आपको प्रेम करना नही चाहता है। तब आपका प्रतिभाव क्या ? सबसे बड़ी वर्तमान जगत की चेलेंज है,
महाराजसाहाब में अर्जुन बनने के लिए तैयार हूं मगर वो जो दुर्योधन है वह अपने जीवन मैं काई कोम्परोमाईज करना नही चाहता है। सामने वाले को प्रेम देना चाहता हूॅ पर मुझे वह प्रेम का कोई प्रतिभाव देने के लिए तैयार नही है। आई वुड लाईक आस्क यू, ऐसी स्थिति में हमे क्या करना चाहिए ?
आप प्रेम दो और आपके प्रेम का आउटपु ट वो तिरस्कार से देता चले, हमारे पास फिर भी प्रेम देने के लिए मन बना रहें ऐसा कोई रास्ता है क्या? मैने प्रेम दिया आपने मुझे प्रेम रिपीट किया वहां तो ठीक है सब ठीक चल रहा है, मगर मैने प्रेम दिया और आपने मेरे प्रेम के सामने मुझे तिरस्कार किया फिर भी मुझे प्रेम देना है कहाँ तक…ये दिमाग मेरा बना रहेगा ? आप कुछ साल्युशन दोगे ?
सभा- म.सा. आप ही बताओ।
गुरूदेव- मैं तो बताउगाॅ मैं तो बताने के लिए तो आया हूँ।
सुधीर भाई-यहाँ रोज हम रोज यह अनुभव करते है, बहुत सी बार कई लोगो से
गुरूदेव- मगर सुधीर जी ये वो बात है आप जो अनुभव करते हो ना ये इनका कारण ये कि करीबन-करीबन उनको खुद पर काबु नही है। आप भी उसी ऐंगल से देखते हो ठीक है काबू ही नही है तो उनके तिरस्कार का हम क्या प्रतिभाव गलत दे। मगर जिनकी खोपड़ी पर पूरा काबू है वो जब नही देता है तब यह प्रश्न उठता है।
आपको बताउ एक पागल आदमी, पीने वाले ने आपको गाली दी और आप दौडे- दौडे और आपको लगा कि उनको सालों को समझा दूॅ मगर जैसे नजदीक गये तब पता चला कि पिया हुआ है फिर क्या कहेगें? जब यह पिया हुआ है ऐसा जानने के बाद उसको प्रतिभाव देने हम तैयार नही है मगर अच्छा आदमी और वो जब गाली देता है तो इनका रास्ता क्या है ? वो एक रास्ता वही रास्ता बहुत बडा चेलेंजेबल है मैं रिपिट करना चाहूंगा, सब कुछ दान सरल है तीन दान- प्रेमदान, क्षमादान और अभयदान श्रेष्ठतम केटेगिरी में आते है। एक करोड का डोनेशन दाउद इब्राहिम भी दे सकता है कोई फर्क नही है मगर तहेदिल से किसी को प्रेम देना है, सामने वाले की गलती को क्षमा कर देना और उनको जीवन दान देना बहुत बडी बात है।
ये सेवाधाम में तीनों चल रहा है अभयदान, क्षमादान और प्रेमदान। सच बताऊ यहाँ आने का मन था, मगर रहने का मन नही होता है इसलिए नही होता है कि देख नही पाता हूॅ, अपने बस कि बात नही है सब दुःख देखना, यहां जो भी है उसमें से एक प्रतिशत भी दिक्कत आपके पास आए ना तब पता चलेगा सामाधि किसको कहते है, हाउ टू मेनेज अवर माईण्ड। कोई समाधान नही मिलता है। पांच हजार करोड़ रूपया रखो मगर ये जो स्थिति है उसमें से बाहर कैसे निकाला जाए।
दो बात मैं आपसे कहूंगा इस प्रवचन में सम्पत्ति सभी को नही चाहिए, सौंदर्य सभी को नही चाहिए, सत्ता सभी को नही चाहिए, सम्बन्ध भी सभी को नही चाहिए मगर वो चीज सभी को चाहिए एक शरीर का स्वास्थ्य और मन की समाधि। चाहे में आचार्य हूँ मगर मैं भी चाहता हूँ शरीर का स्वास्थ्य बना रहे और मन कि समाधि बनी रहें। यहाँ दोनो काम होते जा रहे है एक शरीर का स्वास्थ्य और मन की समाधि देने का हर संभव प्रयास।
एक-एक की दो-दो मीनिट में हिस्ट्री सुधीर भाई ने समझाई, लगता है कि ऐसे को कैसे संभाल पाना। 2005 मैं आया था मैं जब ऐसा लडका था जो जंगल में पैदा हुआ था, मैंने वो लड़के को देखा वो चार पैर बन्दर के जैसे चलता था और वो पत्ते खाता था और बन्दर जैसा पेड़ पर चड़ जाता था। ऐसा आदमी हमने कभी देखा नही। बन्दर पेड़ पर चढ़ जाना….. एक अलग बात है मगर एक लडके को चड़ जाना कभी रोटी नही खाई कभी वो दुध नही पिया वो पत्ता ही खाता था जो बन्दर खाता है और ये सुधीर भाई ने उनको मानवीय खोराक खाना सिखाया।
डाउन टू अर्थ टु स्प्रेड द लव-
जहां तक आपका प्रेम फैल सकता है वहां तक फैलाओ और एक प्रेम ऐसी चीज है चाहे कितना भी देते रहो आपके पास कभी कम ना हो और पाने वाला समृद्ध होए बिना न रहे। जिसको मिले वो अमीर बनता जाए और देने वाला कभी गरीब ना रहे वो है प्रेम। लेने वाला अमीर और देने वाला कभी गरीब ना बनावे, हमने ऐसा प्रेम कितने लोगो पर किया होगा ?
यहां आपसे पूछना चाहता हूॅ सच बोलो आउटपुट में कुछ न मिले फिर भी हम प्रेम देते रहे ऐसा अनुभव कितना है ? एक छोटा सा तो आप बताओ मैं जिनपे प्रेम करू वो मुझे प्रेम से प्रेम का जवाब प्रेम से ना दे उनसे में प्रेम नही करूंगा इतना पक्का करना है ? पहले हाँ बोले! मैं जिसको प्रेम देता हूँ यदि वो मुझे प्रेम न दे तो उस पर मैं प्रेम नही करूंगा ये पक्का करना है तो एक काम करो तो आज से पैसे से शुरू करो। नही समझे ? कितना प्रेम तुम पैसे से करते हो कभी आपको पैसे ने प्रेम किया क्या ? आज से तय करो, पैसे से बोल दो कि दोस्त तेरे पीछे जिन्दगी भर पागल बनते रहा तूने आज तक कभी मुझे आउटपु ट में प्रेम नही किया आज से तेरे पर से प्रेम खतम। आप किसी जीवित व्यक्ति के सामने वही करते होना मैने तुझे प्रेम किया मगर तुने क्या किया चल आज से तेरा प्रेम बन्द, बस इतनी बात पैसे से करो।
मैने कहीं पढा था सच्चा नही होगा एक आदमी का केस गांधी जी ने लड़ा था वो जब गरीब आदमी था, फ्री में केस लड़ लिया और लड़ने के बाद जीत गया और जीतने के बाद वो आदमी ने गांधीजी को कहाॅ कि ‘‘बापू आप एक बात बताओ आप तो इतने परोपकारी हो जब तक हो आपका केस तो कोई गरीब आदमी का भी लड़ लेते हो और वो आदमी जीत जाता है आपके जाने के बाद हम गरीबों का क्या होगा ?’’
‘‘बापू ने बोला-कोई चिंता मत करना पाँच सौ कि नोट पर मैं आ जाउंगा।’’
नम्बर 1. डाउन टू अर्थ,
नम्बर 2. स्प्रेड द लव और
नम्बर 3. का यह शब्द है माईल्ड वर्ड।
कठोर शब्द बंद कर दो। एग्रेसिवनेस पजेसीवनेस बहुत हो गया, जेल में बैठा हुआ कैदी जेलर के साथ कठोर शब्द प्रयोग करेगा मे बी पासिबल जेल से कभी बाहर नही निकल पाएगा। जेल में बंद आदमी को कठोर शब्द प्रयोग चलता ही नही। हम और तुम प्रकृति की कैद में है कर्म की कैद में है इनवीजिबल कोई कैद हम सब पर है सोचते है क्या, होता है, क्या, जाना है। कहां पहुंचते है कहां। आज आपकी मुलाकात हुई है ये तीन चीज लेकर जाना है, और मैं आपसे भी कहना चाहता हूं- प्रेम सक्रिय होना चाहिए। आप बाजार जाते हो जैब में रूपया लेकर जाते हो, मगर रूपिये निकाले बगैर व्यापारी माल देता ही नही है, रूपिया निकालना पड़ता है। आप बोलोगे मेरी जेब में है तो कोई भी नही देगा ना, बात इतना ही कहना चाहूंगा जैब में रहे हुए पैसे जब तक बाहर नही निकलते है तब तक कोई माल नही मिलता है, पैसे को सक्रिय होना जरूरी है। मेरे ह्रदय में बैठे हुए प्रेम को भी सक्रिय बनना जरूरी है,
यहाँ बैठी हमारी माता-बहन सभी को कहना चाहता हूं आपके बेटे और बेटी को एक महिना में एक बार यह सब दिखाओं,वो मोबाईल में उलझे और चाॅकलेट खाते है। वो बाईक और गाड़ी में घूमते है। कोई विरोध नही आपका पुण्य होगा मगर कभी उनको यह स्थिति भी तो दिखाओ। उनको पूछो कि बेटा यह छोटे बच्चे ने क्या अपराध किया होगा कि उनको जन्म से यह बुरा मिला और तूने ऐसा कौन सा पराक्रम किया जो तुझे यह सब कुछ अच्छा मिला। कभी तो बोलो और वही बेटे के हाथ से कभी मिठाई कभी कोई डोनेशन दिलाओं तब उनको पता चलेगा और सच बताऊ वो ही आपका बेटा बोलेगा ‘‘पापा! हर एक महिने आप मुझे यहां लेकर आओ।’’
अवर लाईफ इज लाईक द वाॅटर। यह वाटर की तीन नेचर है डाउन टू अर्थ-ऊपर से नीचे आता है, स्पे्रड द लव-यह पानी जहां गिरता है वहां रहता नही है वह आगे जाता है और माईल्ड वाईस-आवाज मधुर आती है। अंदर बैठे हो मगर पता चल जाता, बारिश आ रही है, आवाज के हिसाब।
आज सेवाधाम में हम आए मुझे तो बहुत आनन्द आया और एक बात इस पूरे सेवाधाम के कैप्टन तो सुधीर भाई थे मगर कभी कैप्टन अकेला मैच नही जीत सकता है पूरी टीम से जीतता है, जो सुधीर भाई के सहयोगी है सभी का जो भाव वह रियली मिरेकल भाव है।
लास्ट बात बताना चाहूंगा लोहे की किली पानी में डाल दो क्या होगा ? लोह की किली पानी में डालो क्या ? उसको तैराना है तो एक रास्ता है क्या, पानी में डालने के बाद भी लोहे की किली तैर सकती है किसी लकड़े के साथ जोड़ दो, यदि लोहे की किली में लकड़े के साथ जुड़ने की ताकत आ गई फिर लकड़ा रख दो पानी में लकड़ा तो तैर जाऐगा लोहे की किली भी तैर जाएगी। आपका पैसा वो लोहे की किली है और धर्म वो लकड़ा है यदि अकेले पैसे रहे तो डूबा देंगे और धर्म के लकड़े के साथ उनको जोड़ दिया लकड़ा तो तैर जाएगा और आप भी गेरंटी के साथ तैर जांएगे।
आज यहां आना हुआ आप सब भी आए आप सबने देखा। मैं उम्मीद करता हूं यहां आने वाले हरेक की शाता और समाधि बनी रहे, फण्ड के लिए कभी किसी को हाथ ना फैलाना पड़े, लाचारी ना करनी पड़े, सहज रूप से फण्डिंग आपके पास आता चले और दूर-दूर तक ये जो सुवास फैली है वहीं सुवास फैलते-फैलते सभी की साता और समधि बनी रहे यही मंगल कामना के साथ आज के प्रवचन को मैं विराम देता हूं।