
75 वर्ष की उम्र में बहु दिव्यांग वृद्धा का पुनर्वास,,,, बेटी सेवा धाम आश्रम पहुंची मां को लेने तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा आंखों से निकल पड़े आंसू
अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम, उज्जैन में दिव्यांग वृद्धा सावित्रीबाई को मिला नववर्ष में परिवार और प्यार
महावीर स्वामी के आशीर्वाद से 6 वर्ष बाद मिली खुशी अपरंपार
- सुधीर भाई
‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम, उज्जैन में नववर्ष की बेला में भगवान महावीर स्वामी की ऐसी कृपा होगी यह कल्पना नही वरन सावित्रीबाई जो कि बिस्तरग्रस्त होकर पर सेवा पर निर्भर होकर को भी यकीन नही था कि 6 वर्षों के इंतजार के बाद उसकी बेटी उसे लेने सेवाधाम आएगी, यह नजारा देख सम्पूर्ण वातावरण भावुक हो उठा। सेवाधाम आश्रम संस्थापक सुधीर भाई गोयल ‘‘भाईजी’’ ने बताया कि वर्ष 2017 में इन्दौर के वरिष्ठ समाजसेवी समरथमलजी संघवी के अनुरोध पर जैन समाज की साध्वी श्री माँ की सेवक को सेवाधाम में प्रवेश दिया गया था, इनका नाम सावित्रीबाई था, वह इन्दौर स्थित एक स्थानक में पूज्य साध्वी रमणीक कुंवरजी की महाराज साहेब की निष्ठा में सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी किन्तु 70 वर्ष की उम्र में अशक्त होने पर सेवाधाम भेजा गया सेवाधाम में 6 वर्ष तक डिडवानिया (रतनलाल) अवेदना केन्द्र में यहां निवासरत बेटियों ने कांता भाभी के निर्देशन में 24 घण्टे उनकी देखरेख एवं सेवा-सुश्रुषा की क्योंकि उनका सम्पूर्ण जीवन पर सेवा पर निर्भर था। आश्रम में रहते हुए साध्वीजी के साथ बिताए पलों को याद करती रहती , किंतु आखरी समय परिवार की कमी खलती सावित्रीबाई की एक बेटी जो कि गुजरात में रहती थी उसकी जानकारी लगी सुधीर भाई ने परिवार से काउंसलिंग कर बातचीत कर उन्हें समझाईश प्रदान की एवं तब उनका मन परिवर्तन हुआ और नववर्ष 2023 में भगवान महावीर स्वामी की असीम कृपा से वृद्धा सावित्री मां को अपना घर परिवार मिला। सुधीर भाई ने आश्रम परम्परानुसार शाल ओढ़ाकर मोती की माला पहनाकर मिष्ठान्न खिलाकर परिवार में पुनर्वास किया।

सुधीर भाई का कहना है
आश्रम ने ऐसे अनगिनत वृद्धजनों को अपनाया और परिवार में पुनर्वास किया
जिंदा जी शाल ओढ़ाए सम्मान दे और खुशियां देकर आशीष ले जो जीवन की अमूल्य निधि है ।
सुधीर भाई ने बताया कि 50 वर्ष से अधिक समय वृद्धजनों के साथ कार्य करते हुए हो गए है और हमारे देश में परिवार जैसी संस्था के माध्यम से वृद्धजनों की सेवा का कार्य होता है परन्तु उसी समाज में माँ-बाप का भी भरण पोषण करने को कोई तैयार नहीं होता है। बुजुर्गों के सपने उस समय अपने नही होते, जब उनके बुढ़ापे की लाठी समझी जाने वाले बच्चे ही उनको अपने घर संसार और परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा कर देते है। जिन्हें मान मन्नतों से पाला-पौसा वे ही उन्हें पालने-पौसने के लिए मना कर देते है और वे असहाय स्थिति में अपनी रूठी किस्मत को मनाने के लिए सेवाधाम जैसे इसी कार्य को समर्पित आश्रय गृहों का सहारा लेते है। सेवाधाम आश्रम विगत 34 वर्षों से समाज से बेसहारा-बेघर-निराश्रित-मरणासन्न-समाज और परिवार से बहिष्कृत-तिरस्कृत बुजुर्गों की सेवा का कार्य कर रहा है जिन्हें आश्रम के 750 से सदस्यीय परिवार में मान सम्मान के साथ जीवन यापन का अवसर प्रदान किया जा रहा है।
