

सुधीर भाई ने महान समाज सुधारक विश्व विंद्य महाराजा अग्रसेन जिन्होंने 5145 वर्ष पूर्व विश्व में अपने राज्य में आए आगन्तुकों हेतु समाजोत्थान के प्रेरणास्पद अनुकरणीय कार्य किये। महावीरस्वामीजी, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गांधी के जीवन विचारों के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रवादी सोच ने अत्यधिक प्रेरित किया।
मेरे आदर्श और प्रमुख आधार स्तम्भ स्वामी श्री रणछोड़दासजी बापू ‘भगवन‘ की वाणी से जीवन परिवर्तन हुआ, इस कार्य में आचार्य श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी म.सा., देवर्षि पन्यास सुरी वज्रसेन विजयजी म.सा. एवम् जीवनाधार, दयासागर श्रद्धेय आचार्यदेवेश हेमप्रभ सुरीश्वरजी म.सा. के दिव्याशीष।आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरीजी के शब्दों में ‘‘मैं एक जागृत और जीवंत मंदिर में हूं जो संवेदनाओं का मंदिर है, कुछ मंदिर तो ऐसे होते है जहां प्रतिमाऐं होती है और पूज्यनीय होती है पर सेवाधाम में मुझे जीवित प्रतिमाओं के दर्शन हुए।’’
सुधीर भाई का कहना है यहां का प्रत्येक कार्य पारदर्शी है कोई भी व्यक्ति जिसके मन में वेदना को दूर करने के लिए संवेदना के भाव है, सकारात्मक भाव से यहां के सेवा कार्यों में अपनी योग्यता और क्षमताओं का सदुपयोग कर सकता है, जिस प्रकार दिल्ली के उद्योगपति श्री ओमप्रकाश बगड़िया और 15 वर्षों से सेवा को समर्पित मालती देसाई जैसे अनेक सेवाभावी कर रहे है।
आश्रम के मुख्य संरक्षक महामण्डलेश्वर स्वामी प्रखरजी महाराज का कहना है ‘‘सबसे बड़ी इन्सानियत यही है जहां जरूरतमदों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाय यही धर्म है और इससे ही परमात्मा प्रसन्न होते है। असहायों की सेवा और संरक्षण से बड़ा परोपकार क्या हो सकता है, सेवाधाम इसका एक उदाहरण है, जो वास्तविक रूप से प्रताड़ित दलित और पतितों की सेवा कर रहा है जिनसे सम्पर्क रखने में प्रायः सज्जन व्यक्ति भी दूर रहते है।’’
सेवाधाम में निरन्तर अनाम प्रेम के संत अडाणेश्वर दादाजी की प्रेरणा से प्रेम की धारा का प्रवाह हो रहा है। प्रेम और आत्मीयता की सम्पत्ति का बटवारा हर वो व्यक्ति कर सकता है जिनका हृदय दया-करूणा-संवेदना से परिपूर्ण है इसलिए राष्ट्र संत जैनाचार्य आचार्य विजयरत्नसुंदरसुरीश्वरजी महाराज साहेब ने अपने शब्दों में कहा ‘‘दिमाग से काम मत लो हृदय की बात सुनों और हृदय की आँखों से देखो, सहायोगी बनो सेवाधाम के इन दीन-दुःखियों के जो तुम्हारे उद्धारक बनेगें।’’
उज्जयिनी तीर्थ नगरी है यहां पावन पवित्र शिप्रा के साथ जीवनदायिनी गंभीर भी है जिसके बांध के किनारे बसा सेवाधाम आएँ नारायण सेवा और गौसेवा द्वारा पुण्य प्राप्त करें जिससे निष्चित ही आपके कर्मों की गति बदलेगी और निश्चित उन सभी ग्रहों की शांति होगी जो आप पर भारी बताए जाते है।
ज्योतिष समा्रट मोहनखेड़ा तीर्थोद्धारक मुनि ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा. ने भी सेवाधाम आने पर कहा ‘‘किसी के अच्छे कार्यों में निंदा करने की जगह ऐसे कार्यों के सहयोगी बने अथवा निंदा से बचें।’’
सेवाधाम प्रेम, क्षमा और अभयदान का जीवन्त उदाहरण है,
परिवार के बच्चों को माह में एक बार सेवाधाम जरूर लाएँ
अप्रैल 2005 में जब आश्रम जीवन की अंतिम सांसे गिन रहा था, एक समय का भोजन भी ठीक से उपलब्ध नही हो पाता था। मिट्टी की झुग्गी-झौपड़ियों में आश्रमवासी रहते थे, उसी समय गुरूदेव साधु भगवन्तों के साथ पधारे। आश्रम का करूण दृष्य देख गुरूदेव की आंखे नम हो गई, आश्रुधारा बह निकली और गुरूदेव ने कहा – ‘‘दिमाग से काम मत लो हृदय की बात सुनों और हृदय की आँखों से देखो, सहायोगी बनो सेवाधाम के इन दीन-दुःखियों के जो तुम्हारे उद्धारक बनेगें।’’
जुलाई 2018 में बड़नगर चार्तुमास के समय गुरूदेव, साधु-साध्वी मण्डल के के साथ पुनः पधारें और आश्रम के चमत्कारिक परिवर्तन को देखकर भाव विभोर हो गए।
गुरूदेव के शब्दों में सेवाधाम और सुधीर भाई !
” करीबन 2005 मैं यहां आया था तब जो देखा था और आज जो देखा-कही आसमान जमीन का फर्क देखा। 2005 में जो देखा था, सुधीर भाई का प्रयास बहुत अच्छा होने के बावजूद किसी भी कारण से असुविधा बहुत थी, रहने की जगह वह सब कन्जस्टेड थी। आज जो देखा वह देखने के बाद लगा कि एक व्यक्ति अपनी सोच का, अपने समय का, अपने जीवन का बलिदान देती है तब क्या चमत्कार कर सकती है वो आंखों से देखा। ऐसी संस्था भी कभी डोनेशन देने का मन होना बहुत आसान है मगर पूरी जिन्दगी यहां लगा देना इन लोगो के बीच में करीबन मेंटिली रिटायर्ड उन लोगो की सुविधा के लिए प्रयास करने के बावजूद कभी कभी वो टाॅन्ट, गलत रिएक्शन देे देते है, कभी चांटा भी मार देते है, कपड़ा बिगाड़ देते है उन सब के बीच में मन की प्रसन्नता को बनाए रख करके, उन लोगो के प्रति प्रेम को सुरक्षित रखकर के यह काम करना! बहुत बड़ी ताकत चाहिए। एडवांस टेक्नोलाॅजी के इस युग में जहां संवेदनशीलता करीबन-करीबन मर चुकी है, मर गई है। ऐसी संस्था दिल से चलाना और यह पारदर्शक व्यवस्था सचमुच काबिले तारीफ है। “

बिछड़े हुए, माँ-बाप से छूट गये या तो माँ-बाप ने खुद ने छोड़ दिया, कहीं रेलवे स्टेशन से कही कचरे के ढ़ेर से मिले हुए ऐसे सबको सम्भालना-चाहे वह 8 घण्टे का, 8 साल का हो, चाहे वो 80 साल का हो, चाहे मेन्टेली रिटायर्ड हो चाहे विकलांग हो दिव्यांग हो एक ही प्रेम से सबको सम्भालना बहुत बड़ी आनन्द की बात है। पूरे यह सेवाधाम को सुधीर भाई को, इनकी पूरी टीम को उन सभी डोनर (दानियों) को, जो इस आश्रम के विकास में सतत सहयोगी है उनको क्योंकि कभी अकेले केप्टन से मैच नही जीती जाती है, सुधीर भाई के साथ इनकी पूरी टीम जो डिवोटेड दिखी वह सभी धन्यवाद के पात्र है।