April 24, 2025

ऊँ श्री सदगुरु रणछोड़दासाय समर्थाय नमः

चित्रकूट के मानवसेवी सदगुरु श्री रणछोड़दासजी महाराज के दिव्य वचन  

अत्रि, वशिष्ठ, शांडिल्य आदि ऋषियों की परम्परा में देदीप्यमान संत श्री श्री 1008 परमपूज्य श्री रणछोड़दासजी महाराज संत रूप में चित्रकूट में सेवारत हुए। उन्होंने अपने त्याग एवं सेवा कार्यों से चित्रकूट का गौरव बढ़ाया। पूज्य गुरूदेव ने, जिन्हें परमहंस का श्रद्धास्थान प्राप्त था, सम्पूर्ण देश का व्यापक भ्रमण किया और समाज की परिस्थिति का भलीभांति अध्ययन कर निरपेक्ष भाव से, प्रचार-प्रसार से दूर रहते हुए, लोगों को मानव सेवा की प्रेरणा की। उनके अनुसार भूखे को भोजन, नंगे को वस्त्र, प्यासे को पानी और हर आंख की रोशनी ही सच्ची मानव सेवा है।

परमपूज्य श्री रणछोड़दासजी महाराज इस शताब्दी के एक ऐसे संत हुए है जिनका सम्पूर्ण जीवन दीन-दुःखियों की सेवा को समर्पित रहा। सूखा, बाढ़, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित मानवता को राहत पहुंचाने के लिए उन्होंने देश के अनेक भागों विषेशतः मध्यप्रदेष, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेष, राजस्थान, बिहार और उड़ीसा में विशाल सेवा-शिविरों का आयोजन किया। इसके साथ ही पिछड़े अंचलों के दीन-साधनहीन लोगों को मोतियाबिन्द-जनित अंधत्व से मुक्ति दिलाने के लिए व्यापक पैमाने पर ‘ नेत्र यज्ञों ‘ का आयोजन किया। आज पूरे देश में अंधत्व निवारण का जो राश्ट्रीय कार्यक्रम चल रहा है, उसका बीजारोपण वस्तुतः उनके द्वारा वर्श 1950 में, चित्रकूट में ‘ तारा नेत्रयज्ञ ‘ के रूप में शरू हुआ। इन सेवा कार्यों के साथ-साथ पूज्य गुरूदेव ने पिछड़े क्षेत्रों के निर्धन लोगों को षिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाऐं प्रदान करने और उनके आर्थिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु कार्य करने के लिए अपने अनुयायियों को उत्प्रेरित किया। यह उनकी प्रेरणा का ही फल है कि आज देष के अनेक भागों में उनके अनुयायियों द्वारा गठित पारमार्थिक न्यासों के माध्यम से शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक जागृति और आर्थिक विकास की अनेक गतिविधियाँ संचालित की जा रही है।

परम पुनीत चित्रकूट का जानकी कुंड क्षेत्र आपकी साधना स्थली रही। सेवा शि विरों में तथा अन्य विषिष्ट अवसरों पर पूज्य गुरूदेव उपस्थित श्रद्धालुओं का प्रबोधन किया करते थे। भगवान राम उनके इष्ट देव थे और रामचरित मानस तथा गीता उनके प्रिय ग्रंथ। अपने प्रवचनों में वे इन सद्ग्रंथो सहित अन्य धर्मषास्त्रों को प्रचुरता से अनुभूति के लिए सेवा, अन्तःकरण और आचरण की शु द्धता एवं भगवत् परायणता पर बहुत जोर देते थे। उनके सानिध्य में रहने वाले भाई-बहनों ने उनके श्रीमुख से निसृत कल्याणकारी वचनों को अत्यंत अध्यवसायपूर्वक संग्रहीत-संपादित करके पुस्तको के रूप में प्रकाशित किया है, जिनमें निम्नांकित विषेश उल्लेखनीय है।श्री गुरूदेव की सन्निधि में (भाग 1 तथा भाग 2), मानव दृश्टि, हमारे गुरूदेव, सुधा सरिता, उन्नत जीवन, गुरूदेव के षब्दों में ‘ जीवन का हेतु ‘ एवं ‘ सेवाधर्म प्रणेताः सद्गुरू श्री रणछोड़दासजी महाराज – जीवन वृत्तांत ‘ उपरोक्त पुस्तके सद्गुरू सेवा संघ ट्रस्ट, जानकी कुण्ड, चित्रकूट सद्गुरू सदन आश्रम, कुवाड़वा रोड़, राजकोट (गुजरात) पर सुलभता से उपलब्ध है। 

पूज्य गुरूदेव ने वर्ष 1970 में नश्वर देह का त्याग किया परन्तु उनके द्वारा इंगित या प्रेरित सेवा-गतिविधियों का क्षेत्र निरन्तर बढ़ता जा रहा है और उनसे नये-नये लोग जुड़ते चले जा रहे है। इस वर्त मान सेवक-परिवार में अधिकांष ऐसे लोग हैं जो पूज्य गुरूदेव के प्रति श्रद्धाभाव रखते है परन्तु जिन्हें उनको देखने या सुनने का अवसर नही मिला। ये जिज्ञासु सेवक पूज्य गुरूदेव के अमृत वचनों का एक ऐसा संक्षिप्त संकलन चाहते है जो प्रामाणिक हो तथा जिसका वे अपने कामकाजी जीवन की व्यस्तता के बीच में भी निरन्तर अध्ययन-अनुषीलन कर सकें। इस हेतु सतत् गुरूदेव की प्रकाषित पुस्तकों का अध्ययन-मनन आवष्यक है। उनकी पुस्तकों में समाविविष्ट पूज्यश्री के दिव्य वचनों का नियमित श्रद्धापूर्वक अध्ययन और मनन करने वाले भाई बहनों को निष्चित ही उस राह पर चलने की प्रेरणा मिलेगी जिस पर चलने में सब प्रकारसे कुशल है, शांति और सुख है तथा जीवन की सार्थकता है। 

गुरूदेव द्वारा 1968 में स्थापित श्री सद्गुरू सेवा संघ ट्रस्ट चित्रकूट के माध्यम से प्राकृतिक आपदा राहत, स्वास्थ्य सेवाऐं, जानकी कुण्ड चिकित्सालय, मातृत्व सदन, सार्वजनिक चिकित्सालय आनन्दपुर, संस्कृत विद्यालय, श्री सद्गुरू षिक्षा समिति,   श्री सद्गुरू पब्लिक स्कूल, वेकल्पिक शाला, कम्प्यूटर शिक्षा, सद्गुरू नर्सिंग स्कूल, नेत्र सहायक प्रशि क्षण स्कूल, संगीत विद्यालय, ग्राम विकास कार्यक्रम, महिला समिति, उपभोक्ता भण्डार, खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियां, आधुनिक गौषाला, गौसेवा केन्द्र, श्री रघुवीर मंदिर ट्रस्ट सहित विभिन्न सेवा प्रकल्पों का सचांलन किया जा रहा है। 

गुरूदेव द्वारा उज्जैन में स्थापित उजड़ खेड़ा हनुमान मंदिर उर्जा का एक विषिश्ट केन्द्र स्थल है। भक्तों के अनुसार यहां गुरूदेव के साथ हनुमानजी को साक्षात देखा गया है।

जीवन का हेतु

– मानव जीवन शांन्ति की अनुभूति के लिए है। जीवन में शांति न हो तो जीवन ही क्या है। क्लेश मय जीवन, जीवन नहीं….। भोगों के लिए हाय-हाय करने में ही जीवन पूरा कर देना बुद्धिमानी नही। मनुष्य जीवन स्वार्थ व इन्द्रियों को अपने वश में करके उनके सदुपयोग से स्वार्थ, मोह व रागादिक से उपर उठकर शा न्ति, सुख व आनन्द की अनुभूति के लिए है। लिप्सा,तृष्णा , वासना आदि आज तक किसी की भी पूर्ण नही हई, न तुम्हारी होगी।

– मानवता का सबसे उत्तम आचरण यह है कि अपना मन सदैव कोमल रखें, इन्द्रियों को अपने अधीन रखें, न्याय और नीतिपूर्वक धन उपार्जन करें, अपने परिवार में प्रेम और निष्ठा रखें। अपने तन-मन-धन की शक्ति के अनुसार दान और सेवा करें, कर्तव्य निष्ठा पक्की रखें और परमार्थ में कदापि स्वार्थ बुद्धि न रखें। 

– हमारा जीवन ऐसा होना चाहिये कि हमसे प्राणिमात्र को किंचित हानि या कष्ट न पहुंचे। किसी का भी किंचित अहित न हो। तभी तो सब हमसे निर्भय रह पाएंगे। परिणाम में हम भी निर्भय रह पाएंगे। मानव समाज का यथार्थ स्वरूप वही है जहां निर्भयता और प्रसन्नता की अधिकता हो।

– तन-मन-धन, वाणी या विचार की जो भी, जितनी भी सामथ्र्य हो उसमें बहुजन हिताय की प्रेमजनित भावना हो तभी मानव जीवन का सौन्दर्य निखरता है। कार्य-कारण का अटल नियम है कि जो किया जाएगा वही प्रतिफल में मिलेगा। एक दाना बोने पर हमें कई दानों की फसल मिलती है। सुख चाहते हो तो अपने सुख का निश्चित अंश दूसरों को बांट दो। मन को विशाल-व्यापक बनाने के अतिरिक्ति और कोई उपाय नही है। जो सत्कर्म, सदाचार और परमार्थ नही करता उसका मनुष्य शरीर निरर्थक है।