
आज जिसे हम उज्जैन के नाम से जानते है वह अतीत में अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा, अमरावती आदि अनेक नामों से अभिहित रहा। मानव सभ्यता के प्रारंभ से यह भारत के एक महान तीर्थ स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है। पुण्य सलिला क्षिप्रा के दाहिने तट पर बसे इस नगर को भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में एक माना गया है।यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर स्थित है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत और विभिन्न पुराणों में मिलता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम ने इसी पवित्र नगरी में शिक्षा प्राप्त की थी।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री महाकालेश्वर भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन है। कालिदास से शुरू करते हुए, कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया है। उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में, उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकाल में लिंगम (स्वयं से पैदा हुआ), स्वयं के भीतर से शक्ति (शक्ति) को प्राप्त करने के लिए माना जाता है, अन्य छवियों और लिंगों के खिलाफ, जो औपचारिक रूप से स्थापित हैं और मंत्र के साथ निवेश किए जाते हैं- शक्ति। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है, और रात में पूजा होती है। कैसे प्रकट हुए महाकालेश्वर इसकी रोचक कथा है –
अवंती नामक रमणीय नगरी भगवान शिव को बहुत प्रिय थी। इसी नगर में वेद प्रिय नमक एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था. जो कि बहुत ही बुद्धिमान और कर्मकांड का ज्ञाता था. वो शिव भक्त ब्राह्मण प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी आराधना किया करता था। वो हमेशा वेद के ज्ञानार्जन में लगा रहता था। उसे उसके कर्मों का पूरा फल भी प्राप्त हुआ था।
वहीं दूसरी ओर रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस जिसे ब्रह्मा जी का वरदान मिला था, रहता था। इसी वरदान के मद में वह राक्षस अवंती नगर के ब्राह्मणों को उनके धार्मिक कर्मकांडों को करने से रोकने लगा। राक्षस के इस अधार्मिक कृत्य से बहुत परेशान हो गए. तब इन ब्राह्मणों ने शिव शंकर से अपने रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
ब्राह्मणों के इस विनय से भगवान शिव ने पहले तो राक्षस को चेतावनी दी, परन्तु इस चेतावनी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन इन राक्षसों ने ब्राह्मणों पर हमला कर दिया। तब इन राक्षसों से बचाने के लिए भगवान शिव ने धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और नाराज शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस को भस्म कर दिया। इसे देखकर ब्राह्मण भक्त अति प्रसन्न हुए. तथा भगवान शिव को वहीं रुकने का निवेदन करने लगे। ब्राह्मणों के निवेदन से अभीभूत होकर होकर भगवान शिव वहीं विराजमान हो गए। इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया।
आज का उज्जैन
उज्जैन नगर विंध्यपर्वत माला के समीप और पवित्र ऐतिहासिक क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। कालजयी कवि कालिदास और महान रचनाकार बाणभट्ट ने उज्जैन की खूबसूरती को जादुई निरूपति किया है।
कालिदास ने लिखा है कि दुनिया के सारे रत्न उज्जैन में हैं और समुद्रों के पास सिर्फ उनका जल बचा है। उज्जैन नगर और अंचल की प्रमुख बोली मीठी मालवी बोली है। हिंदी भी खासी चलन में है।
उज्जैन इतिहास के अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। क्षिप्रा के अंतर में इस पारम्परिक नगर के उत्थान-पतन की निराली और सुस्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के घाटों पर जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा बिखरी पड़ी है, असंख्य लोग आए और गए। रंगों भरा कार्तिक मेला हो या जन-संकुल सिंहस्थ या दिन के नहान, सब कुछ नगर को तीन और से घेरे क्षिप्रा का आकर्षण है।
उज्जैन के दक्षिण-पूर्वी सिरे से नगर में प्रवेश कर क्षिप्रा ने यहां के हर स्थान से अपना अंतरंग संबंध स्थापित किया है। यहां त्रिवेणी पर नवगृह मंदिर है । पास की सड़क आपको चिन्तामणि गणेश पहुंचा देगी। धारा मुड़ गई तो क्या हुआ? ये जाने पहचाने क्षिप्रा के घाट है, जो सुबह-सुबह महाकाल और हरसिध्दि मंदिरों की छाया का स्वागत करते है।क्षिप्रा जब पूर आती है तो गोपाल मंदिर की देहली छू लेती है। दुर्गादास की छत्री के थोड़े ही आगे नदी की धारा नगर के प्राचीन परिसर के आस-पास घूम जाती है। भर्तृहरि गुफा, पीर मछिन्दर और गढकालिका का क्षेत्र पार कर नदी मंगलनाथ पहुंचती है। मंगलनाथ का यह मंदिर सांदीपनि आश्रम और निकट ही राम-जनार्दन मंदिर के सुंदर दृश्यों को निहारता रहता है। सिध्दवट और काल भैरव की ओर मुत्रडकर क्षिप्रा कालियादेह महल को घेरते हुई चुपचाप उज्जैन से आगे अपनी यात्रा पर बढ जाती है।
सिंहस्थ पर्व
कवि हों या संत, भक्त हों या साधु, पर्यटक हों या कलाकार, पग-पग पर मंदिरों से भरपूर क्षिप्रा के मनोरम तट सभी के लिए समान भाव से प्रेरणाम के आधार है।सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियां चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गए हैं।देश भर में चार स्थानों पर कुम्भ का आयोजन किया जाता है। प्रयाग, नासिक, हरिद्धार और उज्जैन में लगने वाले कुम्भ मेलों के उज्जैन में आयोजित आस्था के इस पर्व को सिंहस्थ के नाम से पुकारा जाता है। उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर यहाँ महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिहस्थ के नाम से देशभर में पुकारा जाता है। सिंहस्थ आयोजन की एक प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित है।अमृत बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चन्द्र, गुरु की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है।
ज्योतिष का प्रमुख केंद्र
उज्जैन प्राचीनकाल में कालगणना और ज्योतिर्विज्ञान का सबसे प्रमुख केंद्र रहा है| स्कंद्पुरण में महाकालेश्वर को समय गणना का प्रवर्तक माना गया है | भौगोलिक गणना के अनुसार, प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर स्थित माना है, कर्करेखा भी यहीं से गुजरती है, यहीं पर कर्करेखा और भूमध्य रेखा एक दूसरे को काटती हैं| महाकालेश्वर का स्थान ही भूमध्य रेखा और कर्करेखा के मिलन स्थल पर है| इसी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीन आचार्यों ने समय की गणना, पंचांग निर्माण आदि के लिए उज्जैन को केंद्र बिंदु माना था। उज्जैन का सूर्योदय काल देश भर के पंचांगों के लिए प्रामाणिक माना जाता है। वर्तमान में विश्व की समय गणना के लिए जो महत्त्व ग्रीनविच को प्राप्त है, वही महत्व पुरातन काल में उज्जैन को प्राप्त था। पूरा उज्जैन नगर वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत विशिष्ट है। कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण यहाँ उत्तरायण सूर्य आता है और लौटकर मकर रेखा के दक्षिण भाग में होता है। मध्य प्रदेश की आध्यात्मिक राजधानी है उज्जैन।
उज्जैन क्षेत्र प्राचीन काल में अवंती जनपद के नाम से सोलह महाजनपद में शामिल थे। यह नगरी हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि सभी धर्मों के समन्वय का प्रतीक रही है। यह एक अलौकिक ऊर्जा से भरा ऐसा स्थान है, जहाँ के कंकर कंकर को शंकर कहा जाता है। मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी के तट पर बसा यह नगर शाश्वत है, जो किसी भी काल में , किसी भी युग में नष्ट नहीं होता| आस्थावान लोग युगों-युगों से यहाँ आकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। साहित्यकारों कलाकारों,विद्वानों,गुणीजनों की यह प्राणप्रिय नगरी है। प्रतिष्ठित 12 ज्योतिर्लिंगों में श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशिष्ट महत्त्व है, यह स्वयंभू है। दक्षिण मूर्ति स्वरुप में होने के कारण तंत्र साधना में इसका बहुत महत्त्व है। इसी नगरी में महाकाल के सेनापति काल भैरव, विक्रांत भैरव, हरसिद्धि देवी और गढ़कलिका भी स्थित हैं। यहीं पर अक्षय वट भी स्थित है| इस वटवृक्ष की महिमा प्रयाग के अक्षयवट और वृन्दावन के वंशीवट के समान है। महान विभूतियों का शहर है उज्जैन मध्य प्रदेश प्राचीन काल से ही साहित्य,संस्कृति,ज्ञान-विज्ञान,पत्रकारिता और समाज सेवा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा है। जिनमें से अधिकांश का संबंध उज्जैन से रहा है। कालिदास, वाणभटट शूद्रक और राजशेखर जैसे विद्वान इसी नगरी के थे। योगेश्वर श्रीकृष्ण के गुरु महर्षि सांदीपनि,महाकात्यायन, भास्, सिद्धसेन दिवाकर, भृतहरी, वाराहमिहिर,अमरसिंह, मयूर,हरिशेण, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य भवभूति आदि जैसी महान विभूतियों का उज्जैन से घनिष्ट सम्बंध रहा है।
सेवाग्राम के समाज सेवी सुधीर भाई
आधुनिक काल में पण्डित सूर्यनारायण व्यास , शिवमंगल सिंह सुमन ,व्यंगकार शरद जोशी , और अंकितधाम सेवाग्राम आश्रम के समाज सेवी सुधीर भाई उज्जैन की कीर्ति पताका फहराते रहे हैं।
आज के उज्जैन की पहचान क्षिप्रा , महाकाल, भर्तहरि और सांदिपनि आश्रम से तो है ही, लेकिन सेवाधाम आश्रम ने भी उसे नई पहचान दी है। इसके संस्थापक और संचालक सुधीर भाई को देखते ही आपको मदर टेरेसा या बाबा आमटे का स्मरण अपने आप हो आता है। गरीब, पीड़ित और असहाय मानव की सेवा में समर्पित सुधीर भाई सेवाधाम के पर्याय है। अल्प समय में वे सेवा के ऐसे अनुकरणीय व्यक्तित्व बनकर उभरे है जो पीड़ित मानव का दुःख दूर करने के लिए चैंबीसो घण्टे कर्मरत रहते है। सेवाधाम इस अंचल का का ऐसा अनूठा पारमार्थिक प्रकल्प है, जहाँ 700 से ज्यादा बीमार, दुःखी, घायल बुजुर्ग और बच्चे राहत की सांस लेते नजर आते है। सुधीर भाई अपने आप में एक ऐसी चलती फिरती ऐम्बुलेंस है, जो कहीं भी किसी भी हाल में पड़े पीड़ित या घायल को सहारा देते हैं , किसी कठोर माँ ने यदि अपने नवजात शिशु को बेसहारा छोड़ दिया है तो सुधीर भाई और सेवाधाम उसकी सुध लेने से पीछे नही हटेंगे। ऐसे कई उदाहरण है, जब सुधीर भाई ने लगभग निर्जीव पड़े लोगों को सड़क से उठाया है और उन्हें नया जीवन दिया है।आज सेवाधाम के प्रति सर्वत्र सराहना के स्वर सुनाई दे रहे है, इसके पीछे सुधीर भाई की समर्पित दृष्टि सम्मिलित है। वे अपने आश्रमवासियों के लिए किसी भी तरह मदद के लिए किसी के भी सामने अपना दामन फैलाने से नही झिझकते। वे कहते है कि सेवा करने के लिए भिक्षा भी माँगनी पड़ी तो मुझे उसमें संकोच नही।



पूरे मालवा में मानवता की मिसाल है सेवाधाम
सुधीर भाई के काम को सहयोग देने वाले हाथों की कमी नही, क्योंकि यह शहर और समाज हमेशा सकारात्मक सुकार्यों का मददगार रहा है। तमाम आलोचनाओं और अरोप-प्रत्यारोपों के बाद भी सुधीर भाई अपने सेवायज्ञ में संलग्न है। आज उज्जैन के आसपास के शहरों के हजारों परिवार अपने दिवंगत बुजुर्गों के स्मृति दिवस या बच्चों के जन्मदिन को मनाने सेवाधाम आते है और अपने हाथ से आश्रम में रह रहे पीड़ितों को भोजन करवाते है और स्वयं भी वहीं भोजन करते है। सुधीर भाई और सेवाधाम ने पूरे मालवा में मानवता की ऐसी मिसाल कायम की है, जिसके प्रति अपने आप श्रद्धा से सिर झुक जाता है। सेवाधाम आश्रम के होने से यह विश्वास बना रहता है कि गरीब और पीड़ित की खबर लेने वाला कोई तो है।सेवा-भावना को एक सम्मानीय स्थान देने का विश्वसनीय काम सुधीर भाई ने किया है। सेवाधाम मानव सेवा का ऐसा मंदिर है जहाँ पीड़ितों और दुःखियों के आँसू पोंछे जाते है और उनके घावों पर मरहम लगाई जातीहै।यहां आत्मीयता है,सेवा है और अपनत्व है। सुधीर भाई जैसी दुर्लभ विभूति है।
बेसहारों का सहारा ‘ सेवाधाम आश्रम ‘
उज्जैन से करीब 20 किलोमीटर दूर अंबोदिया गांव में गंभीर नदी पर बांध के समीप बिल्केश्वर महादेव की छत्रछाया में स्थित है। करीब 14 बीघा के क्षेत्र में बने इस सेवाधाम आश्रम में करीब 700 बेसहारा, विक्षिप्त, अर्द्धविक्षिप्त, एचआईवी पीड़ितों, बलात्कार पीड़िताएं, उनकी संतानें, घरों से निकाल दिये गये वृद्ध पुरुष एवं महिलाएं ना केवल भोजन, वस्त्र एवं आश्रय पा रहे हैं बल्कि विभिन्न प्रकार की कलाएं सीख कर अपने जीवन को एक अर्थ भी दे रहे हैं।
डॉक्टर बनने का सपना छोड़ कर मानव सेवा के लिए समर्पित जीवन
बड़े व्यापारी एवं उद्योगपति घराने में जन्म लेने के बावजूद अपने पारिवारिक पेशे को ठुकरा कर और डॉक्टर बनने का सपना छोड़ कर मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाले सुधीर भाई ने लगभग 32 वर्ष पूर्व सेवाधाम की स्थापना की और एक पिता की तरह आठ हजार से अधिक लोगों के जीवन को सहारा प्रदान किया। देश के जाने माने पोद्दार उद्योग घराने से ताल्लुक रखने वाली उनकी भार्या कांता देवी और उनकी पुत्रियां मोनिका एवं गौरी भी आश्रम में साधारण तरीके से बनी कुटी में सुधीर भाई के साथ रहतीं हैं और उनका सहयोग करतीं हैं। सुधीर भाई और कांता देवी ने आश्रम में रहने वाले अनाथ बच्चों को उनके माता पिता के तौर पर अपना नाम दिया है। साढ़े तीन सौ से अधिक लोगों के आधार कार्ड में माता पिता के रूप में उनका नाम अंकित है। उन्होंने 52 से अधिक लड़कियों का विवाह कराके उनकी गृहस्थी बसायी। ये लड़कियां तीज त्योहारों पर मायके की तरह आश्रम आतीं हैं और उन्हें अपने मायके की तरह से प्रेम एवं सम्मान मिलता है।
महान संत श्री रणछोड़दास जी महाराज के शिष्य
सरकार के सहयोग के बिना ही मानव सेवा की उनकी यात्रा अनवरत जारी है। सेवा के इस अद्भुत प्रकल्प में अपने एकमात्र पुत्र अंकित और पिता की असमय मृत्यु, इकलौती बहन की पति के क्रूर हाथों हत्या, 1979 में पंचमढ़ी में वंचित बच्चों की जीवन रक्षा में अपनी बांयी आंख की रोशनी खो देने के बाद भी वह अपने ध्येय से विचलित नही हुए।महान संत श्री रणछोड़दास जी महाराज के शिष्य सुधीर भाई और सेवाधाम आश्रम के पुण्य कार्यों के प्रशंसकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, सत्यनारायण जटिया, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल, मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचन्द गेहलोत, पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सौलंकी, पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल उर्मिला सिंह शामिल रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा और दिग्विजय सिंह और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह सहित अनेक जननेताओं ने भी ‘सेवाधाम आश्रम को देखा एवं सुधीर भाई द्वारा किये जा रहे मानव सेवा की सराहना की है। इनमें से अनेक नेताओं ने बहुत से पीड़ितों को मदद के लिए आश्रम भेजा है और सुधीर भाई ने उनकी सेवा भी की है।
बाबा आम्टे और मदर टेरेसा से मिली प्रेरणा
बाबा आम्टे और फिर मदर टेरेसा से प्रेरित होकर मानव सेवा के इस कंटीले मार्ग को चुनने वाले सुधीर भाई की पवित्र भावनाओं की गवाही आश्रम परिसर में रहने वाले पशु-पक्षी भी देते हैं। वानर समूह, कौवे तोते आदि पक्षी सुधीर भाई की आवाज सुन कर भोजन पाने के लिए तुरंत आ जाते हैं और उनके हाथों से अनुशासित होकर भोजन ग्रहण करते हैं। गौशाला में डेढ़ सौ से अधिक गायें उन्हें देख कर आकर्षित होकर रंभाना शुरू कर देतीं हैं और बछड़े बछिया उन्हें घेर लेते हैं और प्यार जताने लगते हैं। उनके आश्रम में प्रतिदिन सुबह शाम रामधुन एवं कीर्तन होता है।
सेवाधाम में प्रवेश हेतु अनुशंसाए
सेवाधाम आश्रम में प्रवेश हेतु लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन,केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गड़करी सहित अनेक केन्द्रीय राज्य मंत्रियों,सांसदों, विधाय को, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, जिला पुलिस प्रशासन, न्यायालयों, जेल, चिकित्सा संस्थानों, भारत की विभिन्न बाल कल्याण समितियों, सामाजिक संस्थाओं एवं जन प्रतिनिधियों आदि की अनुशंसाओं से दिव्यांगों,बहु दिव्यांगों, मनोविक्षिप्तों को स्वीकार किया जिनके लिए सम्ंबधित राज्यों में संस्थाओं ने स्वीकार्यता नही उन्हें सेवाधाम ने स्वीकार किया।
सेवा एवं अनुशासन
सुधीर भाई को सेवा एवं अनुशासन के संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले जिन्हें उज्जैन में महाकाल शाखा में उन्होंने बाल्यकाल में ग्रहण किया। उनके नाना गोपालदास जी मथुरावाले स्वतंत्रता सेनानी थे। जबकि उनके मामा विक्षिप्त थे और उनकी बड़ी दादी शारीरिक-मानसिक-दिव्यांग थीं। वृद्ध नाना एवं विक्षिप्त मामाजी के साथ अपने एक मित्र के दिव्यांग भाई की असहनीय पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती थी। इसी से उन्हें उन जैसे लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगी। इसी बीच स्वामी विवेकानंद, महावीर स्वामी और महात्मा गांधी के विचारों के पठन पाठन से उनके मन में संकल्प बना। इसी के फलस्वरूप 13 वर्ष की बाल्यावस्था में वर्ष 1970 में उज्जैन जिले के घट्टिया तहसील के ग्राम अजनोटी में स्वामी विवेकानंद मण्डल की स्थापना कर बच्चों की शिक्षा हेतु ग्राम विद्यालय की स्थापना की। विद्यालय के खर्च के लिए उन्होंने पिता की दुकान के गल्ले से पैसे भी चुराए और मार भी खाई। लेकिन सही बात का पता चलने पर पिता ने प्रोत्साहित भी किया।
विनोबा भावे की प्रेरणा
सुधीर भाई की विनोबा भावे से हुई एक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। दरअसल पहले वह डॉक्टर बनकर दूरस्थ वनवासी क्षेत्र में सेवा कार्य करना चाहते थे। वर्ष 1976 में महात्मा गांधी की निजी चिकित्सक डा. सुशीला नैय्यर के माध्यम से वर्धा स्थित गांधी मेडिकल कालेज में उन्हें प्रवेश मिला। लेकिन एक दिन वह अचानक पवनार पहुंचे, आचार्य विनोबा भावे के आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त कर अपना सम्पूर्ण जीवन ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में उपेक्षित, वंचित, तिरस्कृत-बहिष्कृत दिव्यांग वर्ग को समर्पित करने का प्रण ले लिया। विनोबा भावे के संपर्क में आने के बाद अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ आदिवासी ग्रामीण-श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और गंदी बस्तियों में निराश्रित-मरणासन्न, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों निःसहाय, असहाय, पीड़ित, शोषित वर्ग की सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन और सद्भाव से संबंधित पंच सूत्रीय प्रकल्पों को लेकर 1986 में उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की और कुष्ठधाम हामूखेड़ी में नारकीय जीवन जी रहे महारोगियों की पीड़ा को समझा। उन्होंने सामाजिक विरोध के बीच मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की।
मदर टेरेसा और 1988 में बाबा आमटे से हुई मुलाकात
उज्जैन में एक संस्थागत कार्यक्रम में 13 मार्च 1987 को मदर टेरेसा और 1988 में बाबा आमटे से हुई मुलाकात के बाद सुधीर भाई ने सभी प्रकार के सुख और वैभव को छोड़कर उज्जैन से 15 किलोमीटर दूर ग्राम अम्बोदिया में 14 बीघा भूमिदान देकर आश्रम की स्थापना की जो आज पीड़ित मानवता की सेवा के क्षेत्र में ‘अंकित ग्राम सेवाधाम आश्रम ‘ की स्थापना की जिसने जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में अपने कार्यों से देश विदेश में सराहना हासिल की। सेवा की इस यात्रा में सुधीर भाई को घर परिवार में सामाजिक चुनौतियों कासामना करना पड़ा। उनकी ससुराल के पक्ष से उन्हें इस बात का बेहद दबाव झेलना पड़ा कि वह कोई बड़ा उद्योग या कारोबार शुरू करें लेकिन उन्होंने इस दबाव को स्वीकार नहीं किया। वह अपनी सहधर्मिणी के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं कि पत्नी कांता देवी ने उनका बहुत साथ दिया। इसी से उनकी यात्रा सुगम हो सकी। वर्ष 1984 में जन्मे उनके पुत्र अंकित की सात वर्ष की अवस्था में ही देहांत हो गया। जिसकी स्मृति उन्हें आज भी ताजा है। उन्होंने सेवाधाम आश्रम में बने आश्रय स्थलों के समूह को अंकित ग्राम का नाम दिया है। सुधीर भाई ने वर्ष 1994 में वस्त्र त्याग दिये और शरीर पर केवल तीन श्वेत वस्त्र धारण करना शुरू किया।
कच्छ-भुज में आए भूकम्प के समय सेवाधाम आश्रम की सेवा
वर्ष 2000 में सदी के भीषणतम कच्छ-भुज में आए भूकम्प के समय सेवाधाम आश्रम के माध्यम से क्षत विक्षत शवों के अंतिम संस्कार के साथ ही अंजार, पीरवाड़ी शिविर में पीड़ितो की सेवा के अतिरिक्त अंजार और इन्द्रप्रस्थ में शारीरिक पुनर्वास केन्द्र की स्थापना की। सेवा के इस कार्य के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर सेवा कार्य की प्रशंसा की और उज्जैन प्रवास आने पर सेवाधाम आश्रम आने का आश्वासन दिया।
जल संकट से निपटने के लिए
सेवाधाम आश्रम ने जल संकट से निपटने के लिए वर्ष 1994-95 से 2004-05 के दौरान व्यापक स्तर पर जिला प्रशासन और जनसहयोग से शिप्रा श्रमदान अभियान का संचालन किया और हजारों टन मलबा साफ किया। इस अभियान में धर्माचार्यों, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संस्थाओं, प्रबुद्धजनों, व्यापारियों के साथ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने सहभागिता की।
जल संकट सेनिपटने के लिए सुधीर भाई ने वर्ष 1994-95 और2004-05 में व्यापक स्तरपर जिला प्रशासन और जनसहयोग से शिप्रा श्रमदान अभियान का संचालन किया जाकर हजारों टन मलबा बाहर निकाला गया। इस अभियानमें धर्माचार्यों केसा थ तत्कालिन सांसदश्री सत्यनारायण जटियाके अतिरिक्त जनप्रतिनिधियों,सामाजिक संस्थाओं, प्रबुद्धजनों,व्यापारियों के साथवरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियोंने सहभागीता की।इसी प्रकार गंभीरबांध में जिलाप्रशासन द्वारा मध्यप्रदेशके मुख्मंत्री श्रीशिवराज सिंह चैहानकी अगुवाई मेंशिल्ट सफाई का कार्य कियागया।विशिष्ठ सम्मान -भारत की सर्वश्रेष्ठ संस्था केरूप में सामाजिकन्याय अधिकारिता मंत्रालयभारत सरकार द्वारावयोश्रेष्ठ सम्मान एवंमध्यप्रदेश शासन द्वारादिव्यांग सेवा हेतुमहर्षि दधिचि अवार्ड,भयाजी दाणी अवार्ड,ग्राड फ्रे फिलिप,स्वामी रामा अवार्ड,महावीर अवार्ड सेसम्मानित किया। इसकेसाथ ही साथ संस्था कोअनेक पुरस्कार प्राप्त हुए है।
8000 से अधिक निःशक्तजनों को सहारा मिला
आश्रम में अब तक 8000 से अधिक निराश्रित-मरणासन्न पीड़ितों एवं निःशक्तजनों को सहारा मिला है। तीन हजार से अधिक हिन्दू,मुस्लिम, बोहरा, सिक्ख एवं ईसाई समाज के पीड़ितों की मृत्यु होने पर उनके धर्मानुसार अंतिम संस्कार किया गया। आश्रम में 40 हजार वर्गफुट में अवेदना केन्द्र का निर्माण कराया गया। दिव्यांगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास एवं कल्याण कार्यक्रम चलाया गया है। कुष्ठ सेवा केन्द्र के अंतर्गत वृद्ध संरक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है। महिलाओं और बच्चों हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। ढाई सौ से अधिक नेत्र एवं स्वास्थ्य शिविर के आयोजन हो चुके हैं। निराश्रित, परित्यक्ता एवं विधवा महिलाओं का विवाह और पुनर्वास किया जाता है। नशीले पदार्थों एवं घातक बीमारियों के विरूद्ध जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मानसिक एवं शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों हेतु अंकित विनय विहार सेवाधाम की स्थापना की गयी है। इसके अलावा परिवार समन्वय सेवाओं एवं साम्प्रदायिक सद्भाव के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं।
प्रमुख उपलब्धियाँ
1. 250 से अधिक नेत्रदान द्वारा 500 से अधिक दृष्टिहीनों को ज्योतिप्रदान की गयी।
2.150 से अधिक आश्रम परिवार ने म.प्र. के विभिन्न शासकीय और अन्य चिकित्सा महाविद्यालयों को स्वैच्छिक देहदान द्वारा सैकड़ों योग्य चिकित्सकों के निर्माणमें महत्वपूर्ण योदान।
3.13 माह तक कच्छ-भुज मेंभूकम्प पीड़ितों की सेवा-पुनर्वसन कार्य।
4.8000 से अधिक निराश्रित-मरणासन्न पीड़ितों एवंनिःशक्तजनों को सहारादिया।
5. 3000 से अधिकहिन्दू,मुस्लिम, बोहरा,सिक्खव ईसाई समाजपीड़ितों को धर्मानुसारअंतिम संस्कार।
6. 40 हजार स्क्वेयर फीट में अवेदना केन्द्र ‘‘हाईiस्पाईस’’का निर्माण।
7. दिव्यांगोंके लिए शिक्षा,स्वास्थ्य, पुनर्वास एवं कल्याणकार्यक्रम।
8. कुष्ठ सेवाकेन्द्र के अंतर्गतवृद्ध संरक्षण केन्द्र।
9. महिलाओं और बच्चोंहेतु शिक्षा, स्वास्थ्यऔर प्रशिक्षण कार्यक्रम।
10.250 से अधिक नेत्र एवं स्वास्थ्य शिविर के आयोजन।
11. निराश्रित,परित्यक्ता एवं विधवामहिलाओं का विवाहऔर पुनर्वास।
12. नशीलेपदार्थों एवं घातकबीमारियों के विरूद्धजागरूकता कार्यक्रम।
13. अन्तर्राष्ट्रीय एवंराष्ट्रीय महत्व केदिवसों पर जनजागृतिके विविध कार्यक्रमोंका आयोजन।
14. मानसिकएवं शारीरिक रूपसे दिव्यांग बच्चोंहेतु अंकित विनयविहार सेवाधाम कीस्थापना।
15. परिवार समन्वयसेवाएँ।
16 . साम्प्रदायिक सद्भाव केकार्यक्रम।
17. पर्यावरण के क्षेत्रमें सेवाधाम केपरोक्ष समाजसेवी अंकितगोयल स्मृति में1992 से वर्षा मंगलमहोत्सव के माध्यमसे एक लाख से अधिकपौधों का पौधारोपणएवं मृतकों केविद्युत संस्कार कोप्राथमिकता
18. कोविड के प्रथम लाकडाउन से 24 मार्च 2020 से शुरू भूख मुक्त उज्जैन अभियान के तहत निरन्तर भोजन वितरण। वर्तमान समय तक 5 लाख से अधिक भूख से परेशान लोगो तक पहुंचायाँ भोजन जिला प्रशासन, नगरनिगम एवं सामाजिक संस्थाओं के सहयेाग से वितरित।
19. आवासीयों के स्वावलम्बन औरआत्मनिर्भरता के लिएविविध प्रशिक्षण। वर्तमानमें सेवाधाम आश्रमने बिना जातिधर्म और सम्प्रदायभेद के 700 बेघर,बेसहारा, पीड़ित शोषितनिराश्रित, दिव्यांग मनोरोगी एवंमरणासन्न वृद्ध, युवास्त्री-पुरूष एवंविशेष बच्चे लाभान्वितहो रहे है जो सम्पूर्णभारत के अलग-अलग प्रांतों से बाल कल्याणसमितियों, जिला-पुलिसप्रशासन से यहां भेजे जातेहै। मनोरोगी गर्भवती माताओं, विवाहित- अविवाहित माताओं व उनके बच्चों को भी सेवाधाम अपनाता है। सेवाधाम साम्प्रदायिकसद्भाव का एक विशिष्ट उदाहरण है।जहां सभी धर्म,जाति, सम्प्रदाय के पीड़ित एक साथ एक वृहद परिवार के रूप में रहते है।
पुरस्कार और मान सम्मान !
कुल जमा तीन श्वेत वस्त्र धारण करने वाले सुधीर भाई असीम धैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति की प्रतिमूर्ति दिखते हैं।आपके सेवाधाम आश्रम को देश के विभिन्न प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं। सर्वश्रेष्ठ संस्था के रूप में केन्द्रीय सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वयोश्रेष्ठ सम्मान, मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिव्यांग सेवा हेतु महर्षि दधिचि अवार्ड, भयाजी दाणी अवार्ड, ग्राड फ्रे फिलिप, स्वामी राम अवार्ड, महावीर अवार्ड से सम्मानित किया। इसके साथ ही साथ संस्था को 300 से अधिक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय संस्थाओं द्वारा सराहा एवं सम्मानित किया गया है।
पीड़ित दिव्यांगजनों की सेवा और समग्र उत्थान हेतु सुधीर भाई द्वारा किए गए कार्यों और उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं को भारत शासन, प्रदेश शासन के साथ ही 300 से अधिक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय संस्थाओं द्वारा सराहा और सम्मानित किया गया है।
जिनमें वृद्धजनों की सेवा हेतु भारतशासन द्वारा वयोश्रेष्ठ सम्मान, मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिव्यांग सेवाहेतु महर्षि दधिचि अवार्ड, गाॅड फ्रेफिलिप राष्ट्रीय अवार्ड,भैयाजी दाणी, प्रथम सेवा पथिक सम्मान,गोआ एवं उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश के माननीय राज्यपाल द्वारा विशेष पुरस्कारों से सम्मनित किया जा चुका है। प्राईडआॅफ इॅस्कान उज्जैन,हिमालयन इंस्टीट्यूट हाॅस्पिटल ट्रस्ट एवं हिमालयन विष्वविद्यालय, देहरादून (उत्तराखण्ड) द्वारा‘‘स्वामी रामा मानवताअवार्ड’’ के साथ चैन्नई में भगवान महावीर फाउण्डेशन द्वारा 23वां महावीर अवार्ड भी आपको प्राप्त हुए।
आपके कार्यों में सहभागिता कर सराहा1973 उज्जैन कलेक्टर के रूप में श्रीआई.एस राव ने आपके कार्यों को देख कर प्रशंसा ही नही की अपितु जीवन के अंतिम क्षण तक सहयोगी बने और अपने पुत्र दिव्य प्रभाकर को भी सुधीर भाई के साथ जोड़ा।उसके बाद लगातार अनेक जिला कलेक्टर्स आपके सेवा कार्य में सहभागी बनते चले आ रहे है। वर्तमान उज्जैन कलेक्टर श्री आशीष सिंह भी आपके कार्य से अत्यधिक प्रभावित है। इसी प्रकार उज्जैन के प्रथम संभागायुक्त श्री एस.के. शर्मा सहित श्री आनन्द शर्मा तक सभी संभागायुक्तों ने कार्यों को देखा एवं सराहना की। इनमें छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्य सचिव श्री अशोक विजयवर्गीय भी सम्मिलित है। इसी प्रकार वल्लभ भवनमें पदस्थ श्री डी.जी. भावे,श्री आर.पी. श्रीवास्तव, श्री जे.पी. व्यास के साथ अनेक प्रशासनिक अधिकारियों ने 1975 से आपके कार्यों से जुड़े है। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने सांसद रहते हुए भी आपके कार्यों की सराहना की थी इस प्रकार तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी आपसे काफी प्रभावित हुई। अनेक राज्यपालों द्वारा सम्मान के साथ कार्य की सराहना मध्यप्रदेश की तत्कालीन और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनन्दी बेन पटेल अचानक सेवाधाम पहंची और कार्यों को देखकर अभिभूत हो गई। आपकी प्रेरणा से मध्यप्रदेशके वर्तमान राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल शपथ लेने के तत्काल बाद महाकाल दर्शन के बाद सेवाधाम पहुंचे।आश्रम की सम्पूर्ण गतिविधियों का अवलोकन किया। इसी प्रकार कर्नाटक के राज्यपाल श्री थावरचन्द गेहलोत,हरियाणा के तत्कालीन ज्यपाल प्रो. कप्तानसिंह सौलंकी, श्रीमती किरण बेदी के अतिरिक्त गोआ की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, हिमाचल की राज्यपाल श्रीमती उर्मिला सिंहने सुधीर भाई द्वारा संस्थापित ‘अंकितग्राम‘, सेवाधाम आश्रम को देखा एवं उनके द्वारा किये जा रहे मानवसेवा की सराहना की।मुख्यमंत्रियों और राज्य मंत्रियों ने सराहा दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री साहेबसिंह वर्मा, म.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी, श्री दिग्विजय सिंह ने कार्यो को देखकर सराहना की। शिक्षा-चिकित्सा मंत्री श्री विश्वाससांरग श्रीमती करतारा देवी प्रसन्ना देवी पंजाब, उच्च शिक्षामंत्री श्री मोहनयादव, पर्यटन मंत्री सुश्री उषा ठाकुर, तत्कालीन मंत्रीगणों में श्री पारसचन्द्र जैन, श्री शिवनारायण जागीरदार, श्री नरेन्द्र नाहटा आदि ने भी सेवाधाम के सेवा कार्यों को देखा एवं सराहा।केन्द्रिय मंत्रियों की सराहनाश्री नितीन गड़करी, श्रीमती सुषमा स्वराज, श्री थावरचन्द गेहलोत, श्री सत्यनारायण जटिया, श्री अर्जुनसिंह सहित अनेक केन्द्रीय मंत्रियों ने सुधीर भाई और सेवाधाम आश्रम के सेवा कार्यों की सराहना की। म.प्र. राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल द्वारा 15 लाख रूपए से अधिक की सामग्री, हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तानसिंह सोलंकी द्वारा 20 लाख रूपये की सहायता के साथ तत्कालीन विदेश मंत्रिी श्रीमती सुषमा स्वराजद्वारा वातानुकुलित विंगर एम्बूलैंस, राज्यसभा सांसद निधिसे तत्कालिन सामाजिक अधिकारिता मंत्री श्रीथावरचन्द गेहलोत द्वारा 10 लाख रूपये एवं श्री मेघराज जैन द्वारा 16 लाख रूपये भवन निर्माण हेतु सेवाधाम के सेवा कार्य हेतु प्रदत्त किए। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने सेवाधाम आश्रम पहुंचकर सराहना की और आश्रम के डिडवानिया (रतनलाल) अवेदना केन्द्र का लोकार्पण किया।
सुधीर गोयल चैंपियंस ऑफ चेंज मध्य प्रदेश पुरस्कार से सम्मानित
राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने मंगलवार को भोपाल में आयोजित एक समारोह में उज्जैन के ‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम के संस्थापक-निदेशक सुधीर गोयल और कई हस्तियों को “चैंपियंस ऑफ चेंज मध्यप्रदेश अवार्ड” से सम्मानित किया।
पटेल ने समारोह में कहा कि मैं सेवाधाम में राज्यपाल के रूप में आया हूं और यहां की सेवा को व्यक्तिगत तौर पर देखा है. उन्होंने कहा कि सेवाधाम का कार्य अतुलनीय है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुधीर भाई द्वारा की जा रही मानवता की सेवा का जिक्र किया. यह समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित करने की एक अनुकरणीय पहल है। उन्होंने कहा कि इससे समाज को नई ऊर्जा और प्रेरणा मिलेगी।
प्रसिद्ध विचारक डॉ वेद प्रताप वैदिक ने अपने संबोधन में कहा कि सुधीर भाई सेवा के क्षेत्र में ‘फादर टेरेसा’ हैं, उनका कार्य अनुकरणीय है। उन्होंने मुख्यमंत्री से पूरे राज्य में सेवाधाम जैसे आश्रम स्थापित करने को कहा, जो समय की मांग है.
एडवोकेट नंदन कुमार झा, संस्थापक-चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड, पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष, प्रधान सलाहकार, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष केजी बालकृष्णन, दयाकर रातकोंडा, पूर्व भारतीय राजनयिक और देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर, जनरल चैम्पियंस ऑफ चेंज मध्य प्रदेश इकाई के सचिव भी उपस्थित थे।
भारत में एक ‘ फादर टेरेसा ’ भी हैं !
अंकितग्राम सेवाधाम आश्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहना है कि सुधीर भाई ने ऐसा ही काम किया है यह अनन्त काल तक मनुष्य को अमर रखने वाला कार्य है, यह सदैव मोक्ष का कार्य है। सुधीर जी ऐसे लोगों की सेवा बड़े प्रेम से करते हैं, जिन्हें देखकर आप चैंक जाएं, डर जाएं, भाग जाएं, घृणा करने लगें। इसलिए मैं सुधीर को ‘फादर टेरेसा’ बोलता हूं…
उज्जैन के सेवाधाम को सुधीर गोयल 30-32 साल से चला रहे हैं। यहां लगभग 700 बच्चे, औरतें, जवान और बूढ़े रहते हैं। इनमें से कई दिव्यांग हैं जिनमें दृष्टिबाधित, बहु दिव्यांग, लकवाग्रस्त, कैंसर, टी.बी., एचआईवी, आदि है इनमें से कुछ परित्यक्त महिलाएं और अभिशप्त लोग भी यहां रहते हैं। सुधीर जी इन सब लोगों के लिए भोजन, निवास, कपड़े, दवा, शिक्षा, खेल-कूद आदि का सारा इंतजाम करते हैं। इस आश्रम के प्रथम अध्यक्ष प्रसिद्ध कवि डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन थे।सुमनजी के बाद सुधीर के आग्रह पर मुझे अध्यक्षता संभालनी पड़ी। उस समय सिर्फ 74 लोग यहां रहते थे लेकिन हालत इतनी खराब थी कि सुधीर की माता जी का कहना था कि इसे बंद ही क्यों नहीं कर देते? लोगों का पेट भरने के लिए रोज उधार लेना पड़ता था। जो रोगी मर जाते थे, उनकी अंत्येष्टि भी मुश्किल से हो पाती थी लेकिन फिर इंदौर के कुछ धनाढ्य लोगों की एक बैठक मैंने बुलाई और उनसे कहा कि आप सब एक बार उज्जैन के पास स्थित अम्बोदिया नामक इस सेवाधाम में सिर्फ दाल-बाटी खाने पधारें।सुधीर से मैंने कहा कि तुम किसी से दान के लिए बिल्कुल मत कहना, सब लोग आए। कमाल यह हुआ कि उन दिव्यांग लोगों की देखभाल और सेवा देख कर लोग ऐसे रोमांचित हुए कि लाखों रु. का दान एकदम आ गया। उसके पहले तक सुधीर की पत्नी, दो बेटियां और सारे दिव्यांगजन वहां झोपड़ों में ही रहते थे। पहले-पहल इंद्रदेवजी आर्य ने सेवाधाम का सीमेंट का बड़ा द्वार-बनवाया था- महर्षि दयानंद द्वार- और मेरे पिता जगदीश प्रसाद जी वैदिक ने एक मारुति वेन भी दे दी थी ताकि सुधीर सड़कों पर सड़ रहे लोगों को कंधों और साइकिलों पर नहीं, वेन में लिटा कर सेवाधाम ले आया करे।आज सेवाधाम के 700 आवासी सीमेंट के पक्के भवनों में रहते हैं। सबके लिए साफ-सुथरे बिस्तर और पलंग लगे हुए हैं, सबको उत्तम भोजन मिलता है। अब इस सेवाधाम को मांगे बिना ही करोड़ों रु. दान में मिलते हैं। मुम्बई के जयेश भाई का विशेष योगदान है। कश्मीर से केरल तक के लोग यहां हैं। यहां जाति और मजहब का कोई बंधन नहीं है।सुधीर जी ऐसे लोगों की सेवा बड़े प्रेम से करते हैं, जिन्हें देखकर आप चौंक जाएं, डर जाएं, भाग जाएं, घृणा करने लगें। इसलिए मैं सुधीर को ‘फादर टेरेसा’ बोलता हूं लेकिन सुधीर सेवा की आड़ में किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं करते। इस अर्थ में सुधीर का काम काफी ऊंचा है। मैं चाहता हूं कि कम से कम मध्यप्रदेश के हर जिले में एक सेवा-धाम खुल जाए।सभी विभूतियाँ देवियाँ और सज्जन लोग मुझसे पूछते हैं कि भगवान को देखा है कि नही, देखा, मैं आप सब सज्जनों से कहता हूँ कि अगर ईश्वर की साक्षात अनुभूति करना है तो इस आश्रम में आ जाइये, पूरा दिन बिताइये , कैसी यह सुधीर सेवा करता है लोगों की और कैसे ईश्वर पृथ्वी पर उतरता है, कैसे करूणा का समुद्र बहता है यह आप अपनी आँखों से देखेंगें। सिर्फ पैसा देने से काम नहीं चलता, वह अच्छी बात है, सेवा करना उससे भी बडी बात है। जितने लोगों ने धन दिया है, वे अपने धन को पवित्र कर रहे है उससे उनका उद्धार हो रहा है। आप सेवा करें, यहाँ आएँ, दान भी दें और मोक्ष भी प्राप्त करें। यह सुधीर बहुत बडा काम कर रहे हैं, मैं मदर टेरेसा के आश्रम में कलकत्ते गया, मदर टेरेसा से मिला उनका काम देखा, मेरे जेब में जितने पैसे थे, वह बहुत ज्यादा तो नहीं थे लेकिन जो भी था एक- एक पैसा मैंने उनको निकाल के दे दिया। मदर टेरेसा जैसे मिशिनरियों के काम से मुझे बहुत ैमतपवने तमेमतअंजपवद है यह मैं कई बार लिख चुका हूँ, मदर टेरेसा को भी कह चुका हूँ। लेकिन मैं सुधीर को क्या बोलता हूँ, सुधीर को बोलता हूँ कि अगर वह मदर टेरेसा थीं तो यह फादर टेरेसा है कोई तुलना नहीं है दोनों के कार्य में, सेवा की और बदले में धर्म ले लिया यह कोई प्रशंसनीय सौदा नहीं है। सुधीर कुछ भी नहीं लेता है सिर्फ सेवा करता है इसलिए यह बडा है, मदर टेरेसा से भी बडा है “फादर टेरेसा”। सुधीर ने ऐसा ही काम किया है यह अनन्त काल तक मनुष्य को अमर रखने वाला कार्य है यह सदैव मोक्ष का कार्य है।