April 24, 2025
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अंकितग्राम सेवाधाम आश्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार   डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहना है कि सुधीर भाई ने ऐसा ही काम किया है यह अनन्त काल तक मनुष्य को अमर रखने वाला कार्य है, यह सदैव मोक्ष का कार्य है। सुधीर जी ऐसे लोगों की सेवा बड़े प्रेम से करते हैं, जिन्हें देखकर आप चैंक जाएं, डर जाएं, भाग जाएं, घृणा करने लगें। इसलिए मैं सुधीर को ‘फादर टेरेसा’ बोलता हूं…

 उज्जैन के सेवाधाम को  सुधीर गोयल 30-32 साल से चला रहे हैं। यहां लगभग 700 बच्चे, औरतें, जवान और बूढ़े रहते हैं। इनमें से कई दिव्यांग हैं जिनमें दृष्टिबाधित, बहु दिव्यांग, लकवाग्रस्त, कैंसर, टी.बी., एचआईवी, आदि है इनमें से कुछ परित्यक्त महिलाएं और अभिशप्त लोग भी यहां रहते हैं। सुधीर जी इन सब लोगों के लिए भोजन, निवास, कपड़े, दवा, शिक्षा, खेल-कूद आदि का सारा इंतजाम करते हैं।

इस आश्रम के प्रथम अध्यक्ष प्रसिद्ध कवि डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन थे।सुमनजी के बाद सुधीर के आग्रह पर मुझे अध्यक्षता संभालनी पड़ी। उस समय सिर्फ 74 लोग यहां रहते थे लेकिन हालत इतनी खराब थी कि सुधीर की माता जी का कहना था कि इसे बंद ही क्यों नहीं कर देते? लोगों का पेट भरने के लिए रोज उधार लेना पड़ता था। जो रोगी मर जाते थे, उनकी अंत्येष्टि भी मुश्किल से हो पाती थी लेकिन फिर इंदौर के कुछ धनाढ्य लोगों की एक बैठक मैंने बुलाई और उनसे कहा कि आप सब एक बार उज्जैन के पास स्थित अम्बोदिया नामक इस सेवाधाम में सिर्फ दाल-बाटी खाने पधारें।सुधीर से मैंने कहा कि तुम किसी से दान के लिए बिल्कुल मत कहना, सब लोग आए। कमाल यह हुआ कि उन दिव्यांग लोगों की देखभाल और सेवा देख कर लोग ऐसे रोमांचित हुए कि लाखों रु. का दान एकदम आ गया। उसके पहले तक सुधीर की पत्नी, दो बेटियां और सारे दिव्यांगजन वहां झोपड़ों में ही रहते थे।

पहले-पहल इंद्रदेवजी आर्य ने सेवाधाम का सीमेंट का बड़ा द्वार-बनवाया था- महर्षि दयानंद द्वार- और मेरे पिता जगदीश प्रसाद जी वैदिक ने एक मारुति वेन भी दे दी थी ताकि सुधीर सड़कों पर सड़ रहे लोगों को कंधों और साइकिलों पर नहीं, वेन में लिटा कर सेवाधाम ले आया करे।आज सेवाधाम के 700 आवासी सीमेंट के पक्के भवनों में रहते हैं। सबके लिए साफ-सुथरे बिस्तर और पलंग लगे हुए हैं, सबको उत्तम भोजन मिलता है। अब इस सेवाधाम को मांगे बिना ही करोड़ों रु. दान में मिलते हैं। मुम्बई के जयेश भाई का विशेष योगदान है। कश्मीर से केरल तक के लोग यहां हैं। यहां जाति और मजहब का कोई बंधन नहीं है।सुधीर जी ऐसे लोगों की सेवा बड़े प्रेम से करते हैं, जिन्हें देखकर आप चौंक जाएं, डर जाएं, भाग जाएं, घृणा करने लगें। इसलिए मैं सुधीर को ‘फादर टेरेसा’ बोलता हूं लेकिन सुधीर सेवा की आड़ में किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं करते। इस अर्थ में सुधीर का काम काफी ऊंचा है। मैं चाहता हूं कि कम से कम मध्यप्रदेश के हर जिले में एक सेवा-धाम खुल जाए।सभी विभूतियाँ देवियाँ और सज्जन लोग मुझसे पूछते हैं कि भगवान को देखा है कि नही, देखा, मैं आप सब सज्जनों से कहता हूँ कि अगर ईश्वर की साक्षात अनुभूति करना है तो इस आश्रम में आ जाइये, पूरा दिन बिताइये , कैसी यह सुधीर सेवा करता है लोगों की और कैसे ईश्वर पृथ्वी पर उतरता है, कैसे करूणा का समुद्र बहता है यह आप अपनी आँखों से देखेंगें। सिर्फ पैसा देने से काम नहीं चलता, वह अच्छी बात है, सेवा करना उससे भी बडी बात है। जितने लोगों ने धन दिया है, वे अपने धन को पवित्र कर रहे है उससे उनका उद्धार हो रहा है। आप सेवा करें, यहाँ आएँ, दान भी दें और मोक्ष भी प्राप्त करें।

यह सुधीर बहुत बडा काम कर रहे हैं, मैं मदर टेरेसा के आश्रम में कलकत्ते गया, मदर टेरेसा से मिला उनका काम देखा, मेरे जेब में जितने पैसे थे, वह बहुत ज्यादा तो नहीं थे लेकिन जो भी था एक- एक पैसा मैंने उनको निकाल के दे दिया। लेकिन मैं सुधीर को क्या बोलता हूँ, सुधीर को बोलता हूँ कि अगर वह मदर टेरेसा थीं तो यह फादर टेरेसा है कोई तुलना नहीं है दोनों के कार्य में, सेवा की और बदले में धर्म ले लिया यह कोई प्रशंसनीय सौदा नहीं है। सुधीर कुछ भी नहीं लेता है सिर्फ सेवा करता है इसलिए यह बडा है, मदर टेरेसा से भी बडा है “फादर टेरेसा”। सुधीर ने ऐसा ही काम किया है यह अनन्त काल तक मनुष्य को अमर रखने वाला कार्य है यह सदैव मोक्ष का कार्य है।