April 24, 2025

‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम में पर प्रातःवंदनीय, प्रेम, वात्सल्य एवम् सेवाधाम के जीवनाधार सरस्वतीलब्ध प्रसाद आचार्यदेव पद्मभूषण श्रीमद् विजय रत्नसुन्दर सुरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से सुशिष्य सरल सौम्य, प्रेम की मूर्ति और धर्म रक्षक आचार्य पद्म सुन्दर सुरीश्वरजी म.सा. के पचकान से आश्रम संस्थापक सुधीर भाई गोयल के साथ 17 आश्रमवासियों ने आयंबिल तप किया।

आयम्बिल के तप में तपस्वी  द्वारा समस्त प्रकार के द्रव्यों का त्याग किया जाता हे जैसे मीठा शक़्कर, दूध, घी, तेल इत्यादि ..

आयम्बिल तप को इन्द्रिय पर विजय का तप भी माना गया हे, इस तप का प्रारम्भ राजा श्रीपाल एवं रानी मैना सुंदरी ने यह तपस्या की थी, तभी से यह आयंबिल ओली तपस्या  प्रारंभ हुई।।

आयम्बिल तप करने की विधि में तपस्वी दिन में एक बार उबला हुआ स्वाद रहित रूखा सूखा भोजन एक बार एक जगह स्थिर बैठकर करते हे इस तप को आयम्बिल तप कहा जाता हे.।

आयम्बिल की ओली करने का समय चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के समीप किया जाता हे.।

आयम्बिल की ओली करने वाले तपस्वी शाश्वत नवपद ओली कर धन्य हो जाते हे लगभग 9 दिन तक चलने वाली ओली में तपस्वी भाग्यशाली 9 दिनों तक नीरस भोजन एक बार करते हे,