
कवि हों या संत, भक्त हों या साधु, पर्यटक हों या कलाकार, पग-पग पर मंदिरों से भरपूर क्षिप्रा के मनोरम तट सभी के लिए समान भाव से प्रेरणाम के आधार है। इसी पुण्य भूमि पर स्थित ‘ अंकितग्राम सेवाधाम आश्रम ‘ जहां पर सामान्य जन से ले कर विशिष्ट जन केआते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से ले कर सुश्री सुषमा स्वराज और किरण बेदी तक आखिर कौन हैं जो यहां नहीं आया –

देश के नवें राष्ट्रपति थे डॉ शंकर दयाल शर्मा
इनका कार्यकाल 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 तक रहा। राष्ट्रपति बनने से पूर्व आप भारत के आठवे उपराष्ट्रपति भी थे, आप भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री (1952-1956) रहे तथा मध्यप्रदेश राज्य में कैबिनेट स्तर के मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा, विधि, सार्वजनिक निर्माण कार्य, उद्योग तथा वाणिज्य मंत्रालय का कामकाज संभाला था। केंद्र सरकार में वे संचार मंत्री के रूप में (1974-1977) पदभार संभाला।
इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1972-1974) भी रहे। डॉ. शकंरदयाल शर्मा प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने शिक्षा से लेकर राजनीति में जो भी मुकाम हासिल किया अपनी मेहनत से। राष्ट्रपति बनने से पहले वह उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी, आगरा कॉलेज, लखनऊ यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। उन्हें लखनऊ विश्विद्यालय से समाज सेवा के लिए चक्रवर्ती स्वर्ण पदक भी दिया गया। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय तथा कैंब्रिज में कानून का अध्यापन कार्य भी किया।

निर्मला देशपांडे
आप गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुईं प्रसिद्ध महिला सामाजिक कार्यकर्ता तथा साहित्यकार, उपन्यासकर थी। वे “दीदी” के नाम से विख्यात थीं। निर्मला विनोबा भावे के भूमिदान आंदोलन 1952 में शामिल हुईं। उन्होंने अपना जीवन साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं, आदिवासियों और अवसर से वंचित लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया। उन्हें 2006 में राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार और पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
निर्मला जी विनोबा भावे के भूमिदान आंदोलन 1952 में शामिल हुईं। आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के संदेश को लेकर भारत भर में 40,000 किमी की पदयात्रा की। उन्होंने स्वीकार किया कि गांधीवादी सिद्धांतों का अभ्यास कठिन है, लेकिन उन्हें यह विश्वास था कि पूर्ण लोकतांत्रिक समाज की प्राप्ति के लिए यही एक ही रास्ता है। वे जीवनपर्यन्त सर्वोदय आश्रम टडियांवा से जुडी रहीं।

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी
आप की भारत के संतों, महामनीषियों में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गुणवत्ता एवं जीवन मूल्यों को लोक जीवन में संचारित करने की दृष्टि से उनका विशिष्ट योगदान रहा है। गिरते सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा उनके जीवन का संकल्प था। वे अध्यात्म की सुदृढ़ परंपरा के संवाहक तो थे ही महान् विचारक एवं राष्ट्रनायक भी थे। उनकी साधना एवं संतता का उद्देश्य आत्माभिव्यक्ति, प्रशंसा या किसी को प्रभावित करना नहीं, अपितु स्वांतसुखाय एवं स्व परकल्याण की भावना रही है। इसी कारण उनके विचार और कार्यक्रम सीमा को लांघकर असीम की ओर गति करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। उन्हें हम धर्मक्रांति एवं समाजक्रांति के सूत्रधार कह सकते हैं। वे समाज सुधारक तो थे ही व्यक्ति-व्यक्ति के उन्नायक भी थे।
एक महान संतपुरुष महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज स्वयं में एक संस्था थे, हरिद्वार में भारत माता मंदिर के संस्थापक थे, व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के नैतिक और आत्मिक उत्थान के लक्ष्य को लेकर वे सक्रिय थे। उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य एवं प्रकाश के साथ जिया है वह भारतीय ऋषि परम्परा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने स्वयं ही प्रेरक जीवन नहीं जीया बल्कि लोकजीवन को ऊंचा उठाने का जो हिमालयी प्रयत्न किया है वह भी अद्भुत एवं आश्चर्यकारी है। अपनी कलात्मक अंगुलियों से उन्होंने नये इतिहासों का सृजन किया है कि जिससे भारत की संत परम्परा गौरवान्वित हुई है। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द की अनुकृति के रूप में प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा पाई।

श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी महाराज साहेब
एक मुझे और आपको डाउन टू अर्थ रहना चाहिए। जमीन पर ही रहना चाहिए। चाहे सम्पत्ति कितनी हो चाहे, बुद्धि कितनी हो चाहे, सफलता कितनी हो कोई अहम् पुष्ट करने जैसा नही है। छोटे से बच्चे को लेकर के वृद्धों को देखा, डबल ग्रेजुएट वाले को देखा, अमीरों को देखा सब देखने के बाद यह लगता है भगवान यथाकथ कभी भी तीन चीजों का नशा दूसरे को नेग्लेक्ट करने की बुद्धि का शिकार कभी ना बनावे।
श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी महाराज साहेब की पवित्र वाणी से सेवाधाम के बारे में व्यक्त किए गए विचार –
सेवाधाम प्रेम, क्षमा और अभयदान का जीवन्त उदाहरण है,
परिवार के बच्चों को माह में एक बार सेवाधाम जरूर लाएं !
– पद्म भूषण सरवस्वतीलब्ध, आचार्य श्रीमद् विजयरत्न सुन्दर सुरीश्वरजी म.सा.
2005 में यहां आया था, 13 साल के बाद फिर यहां आना हुआ। आशीर्वाद तो वो टाइम भी दिया था आज भी देता हूं। वो टाइम जो आशीर्वाद कोट किया था वो ही कोट आज कर रहा हूं। सुधीर भाई की और हर दाता की हर कार्यकर्ताओं की जो यहां मेहनत कर रहे है उनके फलस्वरूप यह आश्रम जल्दी से जल्दी बन्द हो जाए ऐसा मैं आशीर्वाद देता हूं।
सुधीर भाई – धन्यवाद (हर्ष-हर्ष)
बन्द हो जाए मतलब कि पूरे हिन्दुस्तान में एक भी आदमी ऐसा ना हो जिनकी यह रिक्वायरमेंट बनी रहे। बन्द हो जाए इनका अर्थ यह नही कि रास्ते पर चलते फिरे सभी का स्वास्थ्य ऐसा पवित्र हो जाए, यहां आने की किसी को भी जरूरत ही ना पड़े। मगर जब तक यह है यह देखने के बाद तीन चीज मन में आई-

भारतीय योग-गुरु स्वामी रामदेव
आपने योगासन व प्राणायाम योग के क्षेत्र में योगदान दिया। रामदेव जगह-जगह स्वयं जाकर योग-शिविरों का आयोजन करते हैं, जिनमें प्राय: हर सम्प्रदाय के लोग आते हैं। रामदेव अब तक देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योग सिखा चुके हैं। उन्होंने अपने सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के साथ पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की सह-स्थापना की।
बाबा रामदेव ने 1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। 2003 से आस्था टीवी ने हर सुबह बाबा रामदेव का योग का कार्यक्रम दिखाना शुरू किया जिसके बाद बहुत से समर्थक उनसे जुड़े। योग को जन-जन तक पहुँचाने में बाबा रामदेव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भारत और विदेशों में उनके योग शिविरों में आम लोगों सहित कई बड़ी-बड़ी हस्तियां भी भाग ले चुके हैं।