April 24, 2025

1970 से समाज सेवा को समर्पित सुधीर भाई सेवाधाम आश्रम के संस्थापक संचालक हैं। सुधीर भाई के लिए यह कोई
सांस्थानिक प्रकल्प नहीं बल्कि उनके जीवन का संकल्प है –
‘ धरती पर अगर कहीं
देवों का वास है तो
वह उन लोगों में है
जो पीड़ित. लाचार,
असहाय और उपेक्षित हैं।
उनकी सेवा में जो
चरम आनंद का
अनुभव करता है
वह ही सच्चा देव भक्त है।’
वह मुस्कान जो दुर्लभ हो और जिसे महसूस करने के लिए मन में कोमलता, निष्काम प्रेम और उच्च भावना की
आवश्यकता होती है, वह यहां आश्रम में महसूस की जा सकती है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन में यह एक ऐसा आश्रम है, जहां पीड़ितों की पीड़ा को दूर करने और उनकी सेवा-सुश्रुषा करने का
काम बड़े मनोयोग से होता है। यहां कुछ घंटे पहले जन्मे नवजात शिशु से लेकर वृद्धावस्था के अंतिम दौर में पहुंच
चुके बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों की सेवा, देखभाल और प्यार बांटने का काम बिल्कुल निशुल्क और पूरे तन-मन से
किया जाता है। इस कार्य को कर रहे पीड़ितों में भगवान का दर्शन करने का भाव रखने वाले सुधीर भाई को नहीं पता है
कि हिचकिचाहट और घृणा जैसी भी कोई चीज होती है।

धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग से ऊपर उठकर वह स्वयं पीड़ित को आश्रम में लाकर उसको नहलाने, उसके घावों, चोटों का
मरहम-पट्टी करने, कपड़े पहनाने, बाल काटने, नाखून काटने से लेकर उसको अपने हाथों से खाना खिलाने तक सब
कुछ करते हैं। इस कार्य में उन्हें इतना आनंद और खुशी मिलती है कि गंभीर से गंभीर रूप से घायल या पीड़ित,
बेसहारा भी उनके साथ हमेशा हंसता-बोलता रहता है।

वर्तमान में सेवाधाम आश्रम ने बिना जाति धर्म और सम्प्रदाय भेदभाव के 700 बेघर, बेसहारा, पीड़ित शोषित
निराश्रित, दिव्यांग मनोरोगी एवं मरणासन्न वृद्ध, युवा स्त्री-पुरुष एवं विशेष बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं जो सम्पूर्ण
भारत के अलग-अलग प्रांतों से बाल कल्याण समितियों, जिला-पुलिस प्रशासन से यहां भेजे जाते है। मनोरोगी
गर्भवती माताओं, विवाहित-अविवाहित माताओं व उनके बच्चों को भी सेवाधाम अपनाता है। सेवाधाम साम्प्रदायिक
सद्भाव का एक विशिष्ट उदाहरण है। जहां सभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय के पीड़ित एक साथ एक वृहद परिवार के रूप में
रहते हैं। इन 700 लोगों के अलावा 300 से ज्यादा अन्य ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें विशेष तरह की देखभाल की जरूरत है।
ये सभी लोग वहां रह रहे हैं।

1976 में पवनार में आचार्य विनोबा भावे से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद सुधीर भाई ने चिकित्सक बनने का सपना छोड़ा,
अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ आदिवासी-ग्रामीण-श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और गंदी बस्तियों में
निराश्रित- मरणासन्न, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों निःसहाय, असहाय, पीड़ित, शोषित वर्ग की सेवा का काम शुरू
कर दिया।

पंच सूत्रीय प्रकल्प

सेवा

शिक्षा

स्वास्थ्य

स्वावलम्बन

सद्भाव

को मूलाधार बनाते हुए पंच सूत्रीय प्रकल्पों के माध्यम से अपने सामाजिक कार्य को गति देते हुए विज्ञान स्नातक
सुधीर भाई ने 1986 में प्रदेश के प्रथम उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की और कुष्ठधाम हामूखेड़ी में
नारकीय जीवन जी रहे महारोगियों की पीड़ा को समझा। मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने
ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की। कुष्ठधाम की स्थापना कर
उन्हें शिक्षा और स्वावलम्बन के साथ जीवनोपयोगी सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु लम्बा संघर्ष किया, परिणाम स्वरूप
आज अनेक महारोगी आत्म स्वाभीमान के साथ स्वावलम्बी जीवन व्यतीत कर रहे है। कुष्ठधाम में बच्चों और
महिलाओं की शिक्षा केन्द्रों के विविध प्रशिक्षणों की व्यवस्था की।

हर चेहरे पर मुस्कान का संकल्प !

1970 से समाज सेवा को समर्पित सुधीर भाई सेवाधाम आश्रम के संस्थापक संचालक हैं। सुधीर भाई के लिए यह कोई
सांस्थानिक प्रकल्प नहीं बल्कि उनके जीवन का संकल्प है –
‘ धरती पर अगर कहीं
देवों का वास है तो
वह उन लोगों में है
जो पीड़ित. लाचार,
असहाय और उपेक्षित हैं।
उनकी सेवा में जो
चरम आनंद का
अनुभव करता है
वह ही सच्चा देव भक्त है।’
वह मुस्कान जो दुर्लभ हो और जिसे महसूस करने के लिए मन में कोमलता, निष्काम प्रेम और उच्च भावना की
आवश्यकता होती है, वह यहां आश्रम में महसूस की जा सकती है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन में यह एक ऐसा आश्रम है, जहां पीड़ितों की पीड़ा को दूर करने और उनकी सेवा-सुश्रुषा करने का
काम बड़े मनोयोग से होता है। यहां कुछ घंटे पहले जन्मे नवजात शिशु से लेकर वृद्धावस्था के अंतिम दौर में पहुंच
चुके बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों की सेवा, देखभाल और प्यार बांटने का काम बिल्कुल निशुल्क और पूरे तन-मन से
किया जाता है। इस कार्य को कर रहे पीड़ितों में भगवान का दर्शन करने का भाव रखने वाले सुधीर भाई को नहीं पता है
कि हिचकिचाहट और घृणा जैसी भी कोई चीज होती है।

धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग से ऊपर उठकर वह स्वयं पीड़ित को आश्रम में लाकर उसको नहलाने, उसके घावों, चोटों का
मरहम-पट्टी करने, कपड़े पहनाने, बाल काटने, नाखून काटने से लेकर उसको अपने हाथों से खाना खिलाने तक सब
कुछ करते हैं। इस कार्य में उन्हें इतना आनंद और खुशी मिलती है कि गंभीर से गंभीर रूप से घायल या पीड़ित,
बेसहारा भी उनके साथ हमेशा हंसता-बोलता रहता है।

वर्तमान में सेवाधाम आश्रम ने बिना जाति धर्म और सम्प्रदाय भेदभाव के 700 बेघर, बेसहारा, पीड़ित शोषित
निराश्रित, दिव्यांग मनोरोगी एवं मरणासन्न वृद्ध, युवा स्त्री-पुरुष एवं विशेष बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं जो सम्पूर्ण
भारत के अलग-अलग प्रांतों से बाल कल्याण समितियों, जिला-पुलिस प्रशासन से यहां भेजे जाते है। मनोरोगी
गर्भवती माताओं, विवाहित-अविवाहित माताओं व उनके बच्चों को भी सेवाधाम अपनाता है। सेवाधाम साम्प्रदायिक
सद्भाव का एक विशिष्ट उदाहरण है। जहां सभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय के पीड़ित एक साथ एक वृहद परिवार के रूप में
रहते हैं। इन 700 लोगों के अलावा 300 से ज्यादा अन्य ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें विशेष तरह की देखभाल की जरूरत है।
ये सभी लोग वहां रह रहे हैं।

1976 में पवनार में आचार्य विनोबा भावे से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद सुधीर भाई ने चिकित्सक बनने का सपना छोड़ा,
अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ आदिवासी-ग्रामीण-श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और गंदी बस्तियों में
निराश्रित- मरणासन्न, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों निःसहाय, असहाय, पीड़ित, शोषित वर्ग की सेवा का काम शुरू
कर दिया।

पंच सूत्रीय प्रकल्प

सेवा

शिक्षा

स्वास्थ्य

स्वावलम्बन

सद्भाव

को मूलाधार बनाते हुए पंच सूत्रीय प्रकल्पों के माध्यम से अपने सामाजिक कार्य को गति देते हुए विज्ञान स्नातक
सुधीर भाई ने 1986 में प्रदेश के प्रथम उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की और कुष्ठधाम हामूखेड़ी में
नारकीय जीवन जी रहे महारोगियों की पीड़ा को समझा। मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने
ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की। कुष्ठधाम की स्थापना कर
उन्हें शिक्षा और स्वावलम्बन के साथ जीवनोपयोगी सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु लम्बा संघर्ष किया, परिणाम स्वरूप
आज अनेक महारोगी आत्म स्वाभीमान के साथ स्वावलम्बी जीवन व्यतीत कर रहे है। कुष्ठधाम में बच्चों और
महिलाओं की शिक्षा केन्द्रों के विविध प्रशिक्षणों की व्यवस्था की।

ज़िन्दगी की जीत पर यकीन करने वाले सुधीर भाई

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर !
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर !!

सुबह औ’ शाम के रंगे हुए गगन को चूम कर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर !
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर !!

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर !
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर !!